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श्रीरत्नप्रभसूरिजीने ५०० शिष्यों के साथ चातुर्मास किया । यह रत्नप्रभसूरि पार्श्वनाथसन्तानीय केशीकुमार नामा गणधर के प्रशिष्य और चउदह पूर्वधर ( श्रुतकेवली ) थे, तथा निरंतर महीने महीने पारणा किया करते थे । चातुर्मास पूर्ण होने के बाद आचार्य महाराज जब गुजरात की तर्फ को विहार करने लगे, तब उनके तप संयम से प्रसन्न होकर भक्तिभाव पूर्वक अम्बिकादेवीने प्रार्थना की किप्रभो ! आप यदि मारवाड देश में विचरें, तो अनेक भव्यात्माओं को सुलभबोधिता और दयाधर्म की प्राप्ति होवेगी ।
इस बात को सुनकर सूरिजी महाराजने अपने ज्ञान में जब उपयोग दिया, तब उनको मारवाड की तरफ विहार करने में अधिक लाभ मालूम हुआ । इस वास्ते उन्होंने ५०० शिष्यों को तो गुजरात की तरफ रवाना किया और आपने एक ही शिप्य को साथ लेकर मा
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