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(८३) कहा-खैर! अब तुं क्या चाहती है ?, देवीने कहा-मेरे को कडडा मडडा ( मांस) प्रिय है अतएव वही चाहती हूं। - आचार्यने कहा-यदि हमारे कहे मुताबिक तुं करेगी तो तुझे अभीष्ट मिलेगा। देवीने कहा-यदि मेरे को अभीष्ट मिल जायगा तो हमेश मैं आपकी
आज्ञा का पालन करूंगी, यह मैं शपथ पूर्वक कहती हूं । गुरूने कहा-देवी ! तुं अपने वचन पर स्थिर रहना, हम तेरे को कडडा मडडा का अनुकरण देंगे उसीमें तुं आनन्द मान लेना। देवी तथास्तु कह कर अन्तर्धान (अदृश्य) हो गई।
एकदा सब श्रावकों को एकत्रित करके रत्नप्रभाचार्यने फरमाया कि-आप लोग चण्डिका की पूजा के लिये अपने अपने घर से सुंवाली, पूडी, आदि पकवान और कपूर, कस्तूरी, अगर, आदि सुगन्धी चीजें जातिवन्त विविध पुष्पों के साथ लेकर उपाश्रय में आओ, यहाँ से उस देवी के मन्दिरमें पूजा करने को चलेंगे।गुरु
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