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( ८४ ) आज्ञा के अनुसार सभी सामग्री तैयार कर के श्रावक उपाश्रय में उपस्थित हुए। आचार्य महाराज ससामग्रीक श्रावकों के सहित चण्डिका के देवल में गये और आचार्यने पकवानों को कडड मडड (कटके) करके देवी को कहाहे देवी! तुं तेरा इच्छित बली-दान ले। देवीने प्रत्यक्ष होकर कहा कि-कडड मडड यह नहीं, दूसरी वस्तु है, वह लाओ। आचार्यने कहाभोली ! इस में तुम हम को कुछ लेना देना नहीं है, मांस भक्षक तो राक्षस ही हो सकते हैं, देव तो नित्य सुधापान करते हैं, अतएव अब तुं दयाधर्म का आश्रय ले और हिंसाजनक प्रवृत्ति का त्याग कर, यही वास्तविक और उभयलोक हितकर अभीष्ट समझना चाहिये। ... इन मधुर और पारमार्थिक वचनों से प्रतिबोध पाकर देवीने हिंसामय बलि-दान लेने का त्याग किया और आचार्य से कहा-स्वामिन् ! आज से मैं आपकी सेविका हूं, कार्य पडने पर
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