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( ७३ ) उसी प्रकार कोरटाजी तीर्थ भी पवित्र, पूजनीय और प्राचीन है। ऐसे पवित्र तीर्थों की यात्रा करने से आत्मा पवित्र, शान्त, तथा निष्कर्म बनती हैं। शास्त्रकार भी कहते हैं कि-तीर्थयात्रा से आत्मा को पवित्र बनाओ, क्योंकि तीर्थों में भ्रमण करने से संसार का भ्रमण मिटता है, तीर्थमार्ग की रज शरीर पर लगने से कर्मरूप रज दूर होती है और तीर्थों का सं. रक्षण करने से सदा शाश्वत सुख की प्राप्ति होती है । शुभमिति ।
श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छनन्दनवनोद्यानविहारि-सूरिपुङ्गवकलिकालसर्वज्ञकन्प-जगत्पूज्य-श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरपदपङ्कजसेवाहेवाक-व्याख्यानवाचस्पत्युपाध्याय-मुनियतीन्द्रविजय-सङ्कलित:'श्री कोरटाजी तीर्थ का इतिहास'
नामको निवन्धः समाप्तः । सं० १९८७ चैत्र सुदि १३.
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