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को स्वकारित कृष्ण-देवालय में ले गया और उसकी प्रतिष्ठा के लिये आचार्य से मुहूर्त पूछा । आचार्य महाराजने सर्वदोष रहित माघमास की सुदि ५ गुरुवार के दिन धनलग्न में ब्राह्म मुहर्त कायम किया । आचार्य की आज्ञानुसार ऊहडने प्रतिष्ठा और संघपूजा के योग्य सभी सामग्री एकत्रित करना शुरू की।
इसी समय में कोरंटक नगर से संघ की विनती लेकर कतिपय श्रावक रत्नप्रभसूरिजी की सेवा में उपस्थित हुए । उन्होंने वंदना के साथ कहा कि-स्वामिन् ! कोरंटक में संघ के तरफ से सुन्दर जिनालय बनवाया गया है, उस में श्रीमहावीरप्रभु की प्रतिमा विराजमान करने के लिये तैयार है। अतएव अच्छा महर्च दीजिये और इस कार्य को कराने के लिये आप वहाँ पधारिये ऐसी संघ की अर्ज है। संघ की अर्ज को ध्यान में लेकर और मुहूर्त देख कर आचार्य महाराजने फरमाया कि-महानुभावो।
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