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इतना ही नहीं किन्तु, जान-माल के संरक्षण का भय पैदा करनेवाले भील और मीणाओं का स्थान बन गया है। इस समय कोरटाजी में न कोई सभ्य मनुष्य है और न सभ्य बनने का कोई साधन है । एक कवि महाशयने ठीक ही कहा है किकहे रहा है आस्मां यह, सब समां कुछ भी नहीं। यह चमन धोके की टट्टी, के सिवा कुछ भी नहीं।
॥ टेर ॥ तोड डारे जोड सारे, बांध कर बंदे कफन । गोर की बगली में चित है, पहेलवां कुछ भी
नहीं ॥ कहे० ॥१॥ जिनके महेलों में हजारों, रंग के फानूस थे। झाड़ उनके कब्र पर हैं, और निशां कुछ भी
नहीं ॥ कहे ॥२॥ तख्तवालों का पता, देते हैं तख्ते मोर के। खोज लगता है यहीं तक, वाद जहाँ कुछ भी
. नहीं। कहे० ॥३॥
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