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(१९) सच मुच ही लोगोंने जा कर देखा, तो मंडप में पूर्ववत् आनन्द हो रहा है और वह पलीता उछल उछल कर फेंकनेवाले कुटिल यतिको जानमाल के खतरे में डाल रहा है। आखिर लाचार हो कर उस फेंकनेवाले यतिने आचार्य महाराज के पास माफी मांगी, तब कहीं उस पलीते से यति का छुटकारा हुआ । इस प्रत्यक्ष चमत्कार को देख कर लोग आश्चर्य निमग्न हुए और जय जयारवों से आचार्य महाराज को धन्यवाद देने लगे। अस्तु.
इस प्रकार आनन्दोत्साह पूर्वक सं०१९५९ वैशाखसुदि पूर्णिमा गुरुवार के दिन वृषभलग्न में नवीन मन्दिर की प्रतिष्ठा करके उसमें दो काउसगियों के सहित श्रीऋषभदेवस्वामी की प्राचीन मूर्ति को जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराजने स्थापन कराई, और ३०० नूतन जिनप्रतिमाओं की अंजनशलाका की।
प्रतिष्ठोत्सव के अन्तिम दिन में कोरटा के ठाकुर श्रीविजयसिंहजी को आचार्य महाराजने
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