________________
(५४) विमान के समान शुशोभित मंडप तैयार कराया
और जयपुर से अन्दाजन ३०० नवीन जिनमूर्तियाँ मंगवाईं । प्रतिष्ठोत्सव में आगत दर्शकों के जान-माल के संरक्षण का काफी प्रबन्ध किया गया।
सब तैयारी होने बाद वैशाखशुदि ५ से विधि विधान बड़ी सावधानता से आचार्यश्रीने कराना शुरू किया। इसीके दरमियान वै० सु० ११ के दिन रात्रि को कतिपय धर्मद्वेषियों की उस्केरणी से एक धर्मान्ध यतिने मंडप के ऊपर सुलगता हुआ एक पलीता फेंका । इस कारण लोगों में महान् कोलाहल मच गया।कुछ सभ्य लोगोंने आचार्य महाराज को यह हाल सूचित किया। आचार्यश्रीने फरमाया कि-"कोई फिक मत करो, मंडप को अंशमात्र हरकत पहोंचनेवाली नहीं हैं । जो खोटा चाहेगा उसीका खोटा होगा । जाओ पलीता वापिस लौट गया और वह फेंकनेवाले के पीछे लगा है।"
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com