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मुहूर्त्त में कुछ नवीन मूर्त्तियाँ जयपुर से मंगा कर, उनकी अंजनशलाका भी करा ली जाय तो अच्छा है । " बस अपने स्थिर निर्णय के बाद संघने आचार्य महाराज के पास आकर अर्ज की कि
गुरुवर ! प्राचीन प्रतिमाएँ कई वर्षो से अधर बैठी हुई हैं और कच्चे मकान के कारण उन पर धूला, पानी गिरने से आशातना भी बहुत होती है । इधर नवीन मंदिर भी बन के तैयार हो गया है । अतएव सब संघ की मरजी है कि- प्रतिष्ठा और अंजनशलाका का साथ ही अच्छा मुहूर्त्त मुकरर्र करिये । "
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आचार्यश्रीने फरमाया कि-“
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यह तो सब ठीक है परन्तु सब से पहले संघ को पट्टी का वैमनस्य मिटाने का प्रयत्न करना चाहिये, क्यों कि वह इस मौके पर न मिटेगा तो प्रतिष्ठा: उत्सव में जो आनंद आना चाहिये वह ''नहीं' आ सकेगा । अतएव प्रथम पट्टी के गाँवों में
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