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(५०) १२ अतिरमणीय नया मन्दिर और प्रतिष्ठा
भूमिनिर्गत उक्त प्रतिमाओं को विराजमान करने के लिये एक अच्छा नया मन्दिर बनवाने का विचार यहाँ के संघने किया और तदनुसार सर्वानुमत से कोरटा कसबे के पूर्व किनारे पर शुद्ध जमीन का पट्टा कराके विकसं०१९२५ में मन्दिर की नीम (पाया) का मुहर्त किया। बाद में बराबर काम जारी रहने से अन्दाजन वीस वर्ष में मंडप के सहित मंदिर का विशाल शिखर तैयार हो गया। अब संघ का विचार हुआ कि प्रथम प्रतिष्ठा करा ली जाय, शेष काम फिर होता रहेगा । परन्तु ' श्रेयांसि बहु विघ्नानि' इस नियम के अनुसार संघ में पारस्परिक कलह के कारण तड़बंधी हो गई, इस से प्रतिष्टा सबन्धी विचार योंही पड़ा रह गया।
इसी अरसे में जैनाचार्य श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज अपनी शिष्यमंडली और कतिपय भावुकों के सहित कोरटाजी तीर्थ
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