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उपदेश देकर, यात्रियों के सुभीते के लिये नवीन मन्दिर के सामने की जमीन का पट्टा कराके, कोरटासंघ को दिलाया। संघने उस स्थान पर विशाल धर्मशाला बनवाई है, जो मौजूद है और उसमें करीबन हजार यात्री ठहर सकते हैं।
इस मन्दिर के मंडप में दहिने तरफ की भीत पर तीन फुट बड़ा और एक फुट चौड़ा एक प्रशस्ति लेख लगा हुआ है, जो १८ संस्कृत आर्या छंदों में है और उसको मोहनविजयवाचकने बनाया है। उसमें लिखा है कि
मारवाडदेशाधिप सिरदारसिंह राठौड़ के राज्य में एरनपुरारोड़ से ६ कोश दूर कोरंटकपुरी (कोरंटागाँव) है। इसकी सुरक्षा विजयसिंहजी ठाकुर करते हैं, जो देवडा सरदार हैं। कणयापुर, कोलापुर, कोरंटकपुर; ये इस कसबे के प्राचीन नाम हैं। उपदेशतरंगिणी आदि ग्रंथों से जान पड़ता है कि-वृद्धदेवसूरिजीने यहाँ सं०१२५२ का चातुर्मास करके नाहडमंत्री(द्वितीय)
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