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________________ ( ५२ ) मुहूर्त्त में कुछ नवीन मूर्त्तियाँ जयपुर से मंगा कर, उनकी अंजनशलाका भी करा ली जाय तो अच्छा है । " बस अपने स्थिर निर्णय के बाद संघने आचार्य महाराज के पास आकर अर्ज की कि गुरुवर ! प्राचीन प्रतिमाएँ कई वर्षो से अधर बैठी हुई हैं और कच्चे मकान के कारण उन पर धूला, पानी गिरने से आशातना भी बहुत होती है । इधर नवीन मंदिर भी बन के तैयार हो गया है । अतएव सब संघ की मरजी है कि- प्रतिष्ठा और अंजनशलाका का साथ ही अच्छा मुहूर्त्त मुकरर्र करिये । " 66 : आचार्यश्रीने फरमाया कि-“ ¿ यह तो सब ठीक है परन्तु सब से पहले संघ को पट्टी का वैमनस्य मिटाने का प्रयत्न करना चाहिये, क्यों कि वह इस मौके पर न मिटेगा तो प्रतिष्ठा: उत्सव में जो आनंद आना चाहिये वह ''नहीं' आ सकेगा । अतएव प्रथम पट्टी के गाँवों में Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034926
Book TitleKortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay
PublisherSankalchand Kisnaji
Publication Year1930
Total Pages138
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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