________________
( २९ )
अब तुं पूर्वभव के वैरसे विचारे दूसरे भैंसों का प्राण क्यों लेती है ? दया और शान्ति का आश्रय ले । चंडिकाने कहा- मैं बहुलकर्मा हूं, अतः जीव वध करना किसी प्रकार नहीं छोड सकती । गुरुने कहा- यदि ऐसा ही है तो नाहड के घर को छोड़ । आचार्य के कहने से मंत्री को कुटुम्ब के सहित सदा के लिये छोड़ दिया । मंत्रीने अभिवर्द्धित भाव से कोरंट आदि नगरों में 'नाहडवसहि' प्रमुख ७२ जिनालय बनवाये, उनकी प्रतिष्ठा संव० १२५२ में श्रीबृद्धदेवसूरिजी से करवाई और मंत्रीने भोजन के पहले जिनपूजादि करने का अभिग्रह लिया ।
इस आख्यान से साफ जाहिर होता है कि कोरंटनगर में सं० १२५२ में अकेले नाहड और सालिग मंत्री के ही पांचसौ कुटुम्ब रहते थे तो इतर कितने कुटुम्ब निवास करते होंगे ? यह भी किं. वदन्ती प्रचलित है कि कोरंटक में नाहड़ - सालिग के पहले भी वृद्धदेवसूरिजीने तीस हजार
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com