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(४०) मुख्य होगा इसीसे उसके नामके साथ मंगलसूचक ॐ लगाया गया है। संभव है यहाँ के सब से प्राचीन महावीर-मन्दिर का जीर्णोद्धार भी नाहडपुत्र-ढाकलजीने कराया हो । क्योंकि उसमें भी 'ॐनाढा' यह अक्षर उकेरे हुए पाये जाते हैं। इसका उद्धार विक्रम की १७ वीं सीकी में कोरटा के नागोतरागोत्री किसी महाजनने कराया है और उसके बाद भी समय समय पर इसके कुछ अंशों का उद्धार होता ही रहा है।
इसकी नौचोकी की स्तंभलताओं के दो स्तंभों पर विना मिति साल के दो लेख चार चार लकीरों में नीचे मुताबिक उकेरे हुए हैं__ " १ श्रीयशश्चंद्रोपाध्यायशिष्यैः श्रीपद्मचन्द्रोपाध्यायैर्निजजननी सूरी श्रेयोर्थ स्तंभलता कारिता।"
" २ श्रीककुदाचार्यशिष्येण भ० स्थूलभद्रेण निजजननी चेहणी श्रेयोर्थ स्तंभलता प्रदत्ता।"
पेश्तर इस के मूलनायक श्रीशान्तिनाथ थे, जो उत्तमांगों(गले आदि) से खंडित थे। उनको
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