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( ४२ ) कोरटा से पश्चिम-दक्षिण कोण में कालिकादेवी का देवल है, जो विक्रमादित्य के पिता राजा गन्धर्वसेन का बनवाया माना जाता है। अनन्तराम सांकला के बाद कोरटा में मोकल. सिंह नामका एक राजा हो गया है। उसने कालिकादेवी की मूर्ति का प्रत्यक्ष चमत्कार देख कर उसकी कायमी पूजा के लिये, उसके पूजारी को ५०० वीघा जमीन भेट की थी, जो अब तक उसीके वंशजों के कब्जे में हैं।
कोरटा के लोगों का कहना है कि प्राचीन कालिकादेवी की मूर्ति मुसल्मानी हमलों में यवनों का स्पर्श हो जाने से रिसा कर झारोली के पहाड में चली गई। उस को यहाँ लाने के लिये अनेक उपाय किये गये, पर वह वापिस नहीं आई । तब उसीके आदेश से उसकी बहिन चामुंडा के सहित उसके स्थान पर कालिका की दूसरी मूर्ति स्थापन की गई, जो अब तक यहीं स्थापित है और यह सं०१३३६ मगसिरसुदि७ के दिन की प्रतिष्ठित है।
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