________________
( ३८ ) की जाहोजलाली अच्छी थी। कितने एक ध्वंसावशिष्ट शिलालेखों से यह भी पता चलता है कि १४, या १५ वीं सीकी में यहाँ जैन और जैनेतर अनेक भावुक यात्रा करने को आते थे। ६ इतर दो प्राचीन जैन मंदिर
१ धोलागढ की ढालू जमीन पर एक भव्य शिखरवाला जिनालय बना हुआ है, जो विक्रम की १३ वीं सदी में नाहड के किसी कुटुम्बी का बनवाया जान पडता है। इसमें हाथ, पैर और गले से खंडित आदिनाथजी की मूर्ति मूलनायक तरीके बिराजमान थी, इससे उस खंडित मूर्ति को इसकी भमती में भंडार कर, उसके स्थान पर दूसरी मूर्ति उतनी ही बडी स्थापन कर दी गई है। जिसकी पालगटी के नीचे लिखा है कि___ “संवत् १९०३ शाके १७६८ प्रवर्त्तमाने माघशुक्लपंचम्यां भृगौ कोरटामहाजनसमस्तश्रेयोऽर्थ श्रीऋषभजिनविंबं का०, देवसूरगच्छे, श्रीशांतिसागरसूरिभिः प्र० सागरगच्छे।"
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com