Book Title: Kortaji Tirth ka Itihas Sachitra
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Sankalchand Kisnaji

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Page 57
________________ (३२) बगीचा फुआरा मोटा महेल बनाव्या पण, थोडो काल वसी तेमां आखर मरी गया ॥ जेनी झलकाट जोइ आंखो झंखवाइ जाय, भीते जेनी रंग भांत भांतना चढ्या रह्या । मणिमय सोनाना सिंहासनो विछाव्या जेमां, पडदा गलीचा घणा कीमती जड्या रह्या ॥ नारीओ नाजुक महामर्द ज्यां निवास करे, सवार पाला जेनी सदा चोकीमा अड्या रह्या। जेमां सली न संचरे के पंखी न प्रवेश करे, एवा महेलोना खाली खंडेर पड्या रह्या ॥ ७ कोरंटकगच्छ की उत्पत्ति जिस समय कोरंटनगर परिपूर्ण जाहोजलाल (समृद्ध) था, उस समय में इस नगर के नाम से श्री कोरंटक नाम का एक गच्छ भी निकला था। इस गच्छ के मूल उत्पादक आचार्य कनकप्रभसू. रिजी माने जाते हैं, जो उसवंश स्थापक आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिश्वरजी के छोटे गुरु भाई थे। अतएव यह गच्छ भी वीरनिर्वाण से ७० वर्ष Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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