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(३३ ) के बाद आस पास के समय में निकला मालूम पडता है । इस गच्छ में अनेक विद्वान् समर्थ आचार्य हुए हैं, ऐसा देलवाडा-आबू, पालनपुर, मूंगथाला आदि गाँवों में स्थापित जिन प्रतिमाओं के प्रतिष्ठा लेखों से सिद्ध होता है। आबू देलवाडे पर विमलवसहि के मुख्य मन्दिर में दो कायोत्सर्गस्थ मूर्तियाँ मंडप में स्थापन की हुई हैं। उनके आसन पर लिखा है कि
सं० १४०८ वर्षे वैशाखमासे शुक्लपक्षे ५ पंचम्यां तिथौ गुरुदिने श्रीकोरंटकगच्छे श्रीनन्नाचार्यसंताने महं० कउरा भार्या, महं० नाकउ सुत महं० पेथड, महं० मदन, महं० पूर्णसिंह, भार्या पूर्णसिरि, महं० दूदा, महं० धांधल, महं० धारलदे, महं० चापलदेवी पुत्र मोरसिंह, हापा, ऊणसिंह, जाणा, नीछा, भगिनी वा० वीरी, भागिनेय हाल्हा प्रमुख स्व कुटुंबश्रेयसे म० धांधुकेन श्रीयुगादिदेवप्रसादे जिनयुगलं कारितं प्रतिष्टितं श्रीककसूरिभिः ।
-सं० १४०८ वै० सु० ५ गुरुवार के दिन कोरंटंकगच्छीय नन्नाचार्य की सन्तति में महं०
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