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(२८) मंत्रिणा यावज्जीवं जिनपूजाद्यभिग्रहो गृहीतः भोजनस्य प्राक् । पृष्ठ १०२, मुद्रित
-आचार्य वृद्धदेवसूरिजी सं० १२५२ में कोरंटकनगर में चौमासे रहे और मंत्री नाहड
और उस के लघु भाई सालिग के पांच सौ कुटुम्बों को प्रतिबोध दिया-जैनी बनाया। उनने आश्विनसुदि ९ के दिन गुरु से प्रार्थना की किप्रभो! हमारी कुलदेवी चंडिका है, वह भैंसे का बलिदान मांगती है तो अब हम क्या करेंगे?
वृद्धदेवसूरिजीने रात्रि में चंडिका को प्रत्यक्ष कर के कहा कि तुं पूर्वभव में श्रीपुर नगर में धनसार सेठ की स्त्री थी। पांचम के रोज तुं शुद्ध वस्त्र पहन कर और अपने बाल पुत्र को फुसला कर दर्शन करने को मंदिर गई। पीछे से बालक भी रोता हुआ आ रहा था, इतने में खीजे हुए किसी भैंसेने बालक को गिरा दिया, जिससे वह मर गया। पुत्र शोक से तूं भी मर कर चंडिकादेवी हुई।
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