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(२५) रचित एक प्रशस्ति लेख भी लगाया गया था, जो ९ आर्या छन्दों में है। प्रशस्ति का मतलब यह है कि-'वीरनिर्वाण से ७० वर्ष बाद रत्नप्रभाचार्यने विद्याबल से दो रूप करके
ओसिया और कोरटा में महावीरमन्दिर-प्रतिमा की प्रतिष्ठा एक ही लग्न में की थी। कोरटा में विद्यमान महावीर बिंब विकलाङ्ग होने से उसको उठा कर, उसके स्थान पर देवड़ा ठाकुर विजयसिंहजी के समय में सं० १९५९ वै० सु० पूर्णिमा के दिन वृषभलग्न में अंजनशलाका करके श्रीराजेन्द्रसूरीश्वरजीने नवीन महावीर
१ भरतपुर ( राजपुताना ) में जन्म सं. १८८३ पोष सुदि ७ गुरुवार । पिता-ऋऋषभदासजी पारख । माता-केशरीवाई । गृहस्थापन का नाम रतनलाल । उदयपुर (मेवाड़) में पारमेश्वरीदीक्षा सं० १९०३ वैशाखसुदि ५ शुक्रवार और सं० १६०६ वैशाखसुदि ३ सोमवार के दिन बडी दीचा सह पंन्यास पदवी श्रीहेमविजयजी महाराज के पास ली। माहोर ( मारवाड़) में सं० १९२३ वैशाखसुदि ५ बुधवार के दिन प्रापको श्रीविजयप्रमोदसूरिजी महाराजने प्राचार्य
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