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( १२ ) इसके लगते ही एक धोले पत्थर की पहाडी है जिसके ऊपर अनन्तरास सांकलाने अ. पने राज्य काल में पका किला बनवाया था, जो धोलागढ के नाम से विख्यात हुआ और अब भी इसी नामसे पहचाना जाता है। यह किला इस समय पतितावशिष्ट है। इसके मध्य भाग में 'वरवेरजी' माता का स्थान है जो अनन्तराम सांकला की अधिष्ठायिका देवी मानी जाती है। इसी के पास एक गुफा है जिसमें तीनसौ आदमी आराम से बैठ सकते हैं। इसके भीतरी कमरे में किसी अबधूत योगी की धूनी है। यहाँ के अधिवासियों का कहना है कि किसी किसी वक्त धूनी में से अपने आप जलती हुई अग्नि दिखाई देती है । इस पहाडी का रास्ता (चढ़ाव) बड़ा विकट और भयंकर है, इस कारण गुफा में न कोई रहता है और न कोई जाता है।
इस कसबे के चारों ओर प्राचीन मकानों
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