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(१७) नेक साधु, साध्वी,श्रावक, तथा श्राविकाएँ यात्रा के लिये आते थे और यह स्थान उस समय में भी तीर्थ-स्वरूप माना जाता था। अतएव निर्विवाद सिद्ध हुआ कि यह स्थान अन्दाजन २४०० वर्ष का पुराना है और जैनों के इतर तीर्थों के समान यह भी माननीय, पूजनीय और दर्शनीय है। ३ प्राचीन वीरप्रतिमा का परिवर्तन__ आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरि प्रतिष्ठित महावीर प्रतिमा के विलोप, या खंडित हो जाने से उसके स्थान पर विक्रम संवत् १७२८ में विजयप्रभसूरि के शासन काल में जयविजयगणि के उपदेश से दूसरी महावीर प्रतिमा पीछे से स्थापन की गई, ऐसा इस मंदिर के मंडपगत एक स्तंभ पर खुदे हुए लेख से पता लगता है। वह लेख इस प्रकार है___“संवत् १७२८ वर्षे श्रावणसुदि १ दिने भहारक श्रीविजयप्रभसूरीश्वरराज्ये श्रीकोरटा नगरे
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