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सौ (१००) वर्ष से ऊपर का स्थापित हो, वह यदि विकलाङ्ग ( उत्तमांगों में खंडित ) भी हो तो पूजने लायक है क्योंकि वह निष्फल नहीं हो सकता । यहाँ पर इतना विशेष है कि वह मूलनायक बिम्ब मुख, नयन, नासिका, ग्रीवा और कटि आदि प्रदेशों में खंडित हो तो पूजने लायक नहीं है, परन्तु आघार, परिकर और लांछन आदि प्रदेशों से खंडित हो तो उसके पूजने में हरकत ( दोष ) नहीं है ।
सुहनक्कनयणनाही, कडिभंगे मूलनायगं चयह । आहरणवत्थपरिगर - चिंधा ओहभंगि पूजा ॥२॥
-मुख, नयन, नासिका, नाभि और कटि आदि प्रदेशों में खंडित मूलनायक बिम्ब पूजा के योग्य नहीं है, यदि वह उत्तमाङ्ग शोभित और आधार, वस्त्र, परिकर से खंडित हो तो पूजा के योग्य है ( श्राद्धविधिटीका )
इन शास्त्रीय आज्ञाओं से यह सिद्धान्त स्थिर हुआ कि - सौवर्ष के ऊपर का प्रतिष्टित और उत्त
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