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( १५ ) जगो कोरटा नामे आज के काल में गाम वसता है । यहाँ भी श्रीमहावीरजी प्रतिमा मंदिर की श्रीरत्नप्रभसूरिजी की प्रतिष्ठा करी हुई अब विद्यमान काल में सो मन्दिर खड़ा है। " ।
उक्त लेखों से इस निर्णय पर स्थिर होना पडता है कि विक्रम से ४०० वर्ष पूर्व, और वीरनिर्वाण से ७० वर्ष बाद सब से प्रथम कोरटा में यही महावीर मन्दिर बना। अतएव उस समय में यह नगर अपनी समृद्धि में अद्वितीय होगा तभी यहाँ रत्नप्रभसूरि जैसे समर्थ आचार्य के हाथ से प्रतिष्ठा ( अंजनशलाका ) हुई।
आचार्य श्रीरत्नप्रभसूरिजी विद्याधरकुल और उपकेशवंशगच्छ में पार्श्वनाथसन्तानीय श्रीस्वयंप्रभाचार्य के पटधर थे। रत्नप्रभाचार्य के हाथ से प्रतिष्ठा होने के कारण से ही कोरंटतीर्थ कहलाया और सर्वत्र तीर्थ तरीके ही प्रसिद्धि में आया। पंडित धनपाल जो धाराधिपति महाराजा भोज की सभा का रत्न था। उसने
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