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हयात हैं, उनका आदि उत्पत्ति-स्थान यही पवित्र देश है । इतना ही नहीं बल्कि, अपने देश को छोड कर दूर दूर देशो में जा वसने पर भी वे जातियाँ वहाँ पर भी अपने पवित्र मारवाडदेश की गौरव-धजा फरका रहीं हैं ।
इस देश की प्राचीनतम नगरी श्रीमाल ( भीनमाल ) में महाराजा भाणजी ( भानु
१ जैनपट्टावली की एक कथा में लिखा है कि गौतमस्वामीने श्रीमाल नामक एक क्षत्रिय राजा को प्रतिबोध देकर जैन बनाया, उसने अपने नामसे नया नगर वसा कर राज्य किया । वही ' श्रीमाल ' इस नामसे प्रख्यात हुआ, जिसके रत्नमाल फूलमाल आदि नाम भी पाये जाते हैं ।
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श्रीमाल का भीलमाल या भिन्नमाल ( भीनमाल ) नाम वि० की १६ वीं सीकी, या उसके बाद के समय में मिलता है । मीयागाँव में स्थित वासुपूज्यप्रतिमा के वि० सं० १५४६ के लेख में श्रीमालीज्ञाति का उद्देशी श्रावक इसी भीनमाल का था | तपागच्छीय मुक्तिसागर को उपाध्याय पद मिले बाद वि० सं १६८० में भीनमाल आये ऐसा राजसागरसूरिनिर्वाणरास में लिखा है । अतएव श्रीमाल का वर्त्तमान भीनमाल नाम भी पुराना जान पड़ता है ।
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