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श्रीमानदेवसूरिजीने इसी देश के नन्दपुर में लघुशान्तिस्तोत्र की रचना की थी।
साहित्यप्रचारक भी इस देश में कम नहीं हुए। याकिनी महत्तरासूनु श्रीहरिभद्रसूरिजीने १४४४ ग्रन्थरत्नों की अभिवृद्धि इसी देश में की थी, मुनिचन्द्रसूरिजीने उपदेश-कन्दली नामक टीका इसी देश में बनाई थी, पूर्णभद्रसूरिजीने पञ्चतन्त्र की संशोधित आवृत्ति का प्रचार इसी देश में किया था और इसी प्रकार वादीदेवसूरि, पूर्णदेवसूरि, वीरसूरि और चन्द्राचार्य आदि समर्थ आचार्योंने भी साहित्यप्रचार सम्बन्धी निज वीरता इसी देश में बताई थी। भारत प्रसिद्ध जेसलमेर के ज्ञानभंडार का सौभाग्य इसी देशने पाया है। अतएव निर्विवाद मानना पड़ता है कि भारतवर्ष में इतर देशों से मारवाड देश किसी वात में कभी पछात नहीं रहा।
अरे ! इतना ही क्यों ? वर्तमान में हि
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