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पुर ( नाडोल ) और जेसलमेर आदि नगरों में भी ऐसे ही धनकुबेर हजारों की संख्या में रहते थे, जिन्होंका स्मरण आज तक उनके कृतकार्यों के प्रशस्ति लेख करा रहे हैं। राणकपुर का त्रैलोक्य-दीपक, नाडलाई के मन्दिर, हमीरगढ के मदिर, नाकोडा के मन्दिर और कापरडा आदि के मन्दिरों के बनवाने वाले इसी देश के धनकुबेर थे और उन पवित्रात्माओं को इसी देशने जन्म दिया था।
श्रीमहावीर-निर्वाण से ७० वर्ष बाद पार्श्वनाथसन्तानीय श्रीरत्नप्रभाचार्यने इसी देश के उपकेश-पट्टन में एक लाख चौरासी हजार और किसी किसी पट्टावली के अनुसार तीन लाख चौरासी हजार क्षत्रिय राजपूतों को प्रतिबोध दे कर उनका उऐस-उपकेश-ओसवाल वंश
१ श्रीमाल नगर से एक जुत्था जुदा पडकर राजपुताना के मध्य-भाग में ओस या उएस नगर वसाकर रहा । वही ' उपकेशपट्टन' (ओसिया ) नाम से प्रख्यात हुआ, और मोसवाल जैनों का मुख्य उत्पत्तिस्थान कहलाया ।
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