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२ श्री महावीरप्रभु- प्रतिमापार्श्वनाथसन्तानीय - श्रीरत्नप्रभसूरिप्रतिष्ठित महावीर प्रतिमा के विलोप, या खंडित हो जाने से उसके स्थान पर यह दूसरी प्रतिमा विक्रम सं. १७२८ में पं. जयविजय गणिने स्थापन की थी, जो इस समय महावीर मन्दिर के मंडप के दहिने तरफ एक ताक में विराजमान है ।
इसके दोनों कान आधे, दोनों हाथ और पैरों के अंगूठे, बांये हाथ का पुणचा, तथा घिसी हुई नाशिका, इत्यादि अंग विकल (खंडित ) है और वे प्रायः सीमट से चिपकाये हुए हैं ।
श्री कोटाजी - तीर्थ |
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