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® कषायों और नोकषायों का प्रभाव और निरोध 8 ५७ 8
तरह व्यर्थ हैं। अतः पूर्वबद्ध कर्मों के क्षय (निर्जरा) के लिए अकषाय-संवर (कषाय-निरोध) ही श्रेयस्कर है, आत्म-शुद्धिकारक है।"१
कषाय और नोकषाय के प्रकार आगम में कषाय के मुख्यतया ४ भेद बताये हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ। नोकषाय कषाय के ही उपजीवी या उत्तेजक हैं, उनके ९ भेद हैं-हास्य, रति-अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद-पुरुषवेद-नपुंसकवेद (कामत्रय)।
अब हम कषाय के प्रत्येक अंग से होने वाली हानियों और उसे किस-किस प्रकार से कैसे शान्त किया जा सकता है ? उससे कैसे बचा जा सकता है ? इस विषय में प्रकाश डालेंगे।
क्रोध : प्रत्यक्ष ही सब कुछ बदलने वाला तस्कर कषाय का पहला अंग है-क्रोध। इसका द्वेष, घृणा, अरुचि, वैर-विरोध, ईर्ष्या, आवेश, रोष और कोप आदि से गहरा सम्बन्ध है। क्रोध को कौन नहीं पहचानता? से सीखने के लिए किसी पाठशाला में नहीं जाना पड़ता। क्रोध के संस्कार एक छोटे-से बच्चे में भी दिखाई देते हैं। जब भी माता-पिता ने उसके मन के प्रतिकूल ात, चाहे वह उसके हित की ही हो, कह दी कि तुरन्त बच्चा रोष में आकर पैर छाड़ने लगेगा, माँ-बाप के चपत लगाने और कपड़े खींचने की कोशिश करेगा। ब भी किसी को क्रोध आता है, तो उसे या दूसरों को तुरन्त पता चल जाता है, मारे होश में वह आता है, बुलाते हैं, तब आता है। क्रोध के आने के बाद भी लूम हो जाता है कि चोर घुस गया है। क्रोधाविष्ट की आँखें लाल हो जाती हैं, ठ फड़कने लगते हैं, हृदय की धड़कन भी बढ़ जाती है, हाथ-पैर भी काँपने लग जाते हैं, शरीर गर्म होने लगता है, रक्त भी गर्म होने लगता है, शरीर का संतुलन भी बिगड़ जाता है, आवाज में तेजी और गर्मी आ जाती है, शब्दों पर नियन्त्रण नहीं रहता, आवेग और आवेश दोनों ही स्वर की गति बढ़ा देते हैं। मुख से प्रायः अपशब्दों की भरमार और बौछार शुरू हो जाती है। कभी-कभी क्रोधावेश में हाथापाई, गाली-गलौज, मारपीट आदि पर भी व्यक्ति उतर जाता है। शब्दों के तीर बिना निशाना ताके व्यक्ति चलाता रहता है। बिना निशाने के भी क्रोधावेश में
१. सामण्णमणुचरंतस्स कसाया जस्स उक्कडा होति।
मन्नाणि उच्छुफुल्लं व निष्फलं तस्स सामन्नं ॥३०१॥ जस्स वि अ दुप्पणिहिआ होति कसाया। सो बालतवस्सी वि व गय-ण्हाण-परिस्समं कुणइ॥३००॥-दशवैकालिक नियुक्ति ३०१, ३00
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