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* योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण ४ १८१
उन स्थावर जीवों को भी भगवतीसूत्र में कहे अनुसार असातावेदनीय का अभाव और सातावेदनीय का सद्भाव काया से होता है और इस कारण नौ प्रकार के पुण्यों में उसे कायपुण्य कहा जा सकता है। निष्कर्ष यह है कि पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय, ये पाँचों स्थावरकाय जीव कायपुण्य से सातावेदनीय कर्म उपार्जित करते हैं । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और संज्ञीपंचेन्द्रिय (नारक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव) सभी नौ प्रकार के पुण्यों में से किसी भी प्रकार के पुण्य का उपार्जन कर सकते हैं । एकेन्द्रिय से चतुरिन्द्रिय तक के जीवों में भले ही द्रव्यमन न हो, भावमन तो होता ही है।
नारक और निगोद के जीव भी पुण्योपार्जन कर सकते हैं
कोई कह सकता है कि नारक जीव तथा सूक्ष्म निगोद के जीव साधु-सम्बन्धी पुण्य उपार्जन नहीं कर सकते, फिर वे सातावेदनीय का कैसे उपार्जन कर सकते हैं और उन्हें पुण्यबन्ध कैसे होता होगा ? इस सम्बन्ध में विचारणीय यह है कि सूक्ष्म निगोद की काया से किसी जीव को दुःख न हो, इस अपेक्षा से कायपुण्य द्वारा सातावेदनीय कर्म उपार्जित किया जाता है। इसी प्रकार नारक जीव द्वारा दूसरे जीवों को किसी प्रकार का उपद्रव न हो तथा मन-वचन-काया से वे नारक के किसी जीव को साता पहुँचाएँ अथवा कोई सम्यक्त्वी नारक देवादिक के कहने से तीर्थंकर आदि महापुरुषों की दीक्षा तथा केवलज्ञान आदि कारणों से प्रकाश आदि होने से जानकर उस अवसर पर उन्हें भाव से नमस्कार आदि करे तो भी पुण्य उपार्जन कर लेते हैं। अतः नारक जीव भी मन, वचन, काय और नमस्कार आदि से पुण्यबन्ध कर लेते हैं। उसके फलस्वरूप वे सातावेदनीय आदि पुण्य प्रकृतियों का बन्ध कर लेते हैं । '
मानवेतर प्राणी भी मानवों और अन्य प्राणियों को साता उपजाकर पुण्यबन्ध करते हैं
'कल्याण' (मासिक) के जून १९६७ के अंक में प्रकाशित स्वामिभक्त गरुड़, खोये हुए कागजातों का चील द्वारा प्रदान, कौए की दयालुता, अहिंसक कीर्तन प्रेमी सर्प, भैंस द्वारा गोवत्स का पालन, स्वामिभक्त गधा, बंदरों द्वारा तोते के बच्चे का पालन, मैना द्वारा चोरों को भगाना, कुत्तों द्वारा अन्धों को मार्गदर्शन, घोड़े द्वारा घायल मालिक को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाना, कुत्ते द्वारा मानव शिशु की रक्षा, बिल्ली द्वारा साँप से क्लार्क को बचाना, चमगादड़ों द्वारा महिला को खतरे से बचाना, भक्त गाय द्वारा मालिक की सेवा, चील द्वारा मानव को जहरीले पानी पीने से बचाना, साँप द्वारा नारी की रक्षा आदि अनेक घटनाएँ प्रमाणित करती हैं,
१. 'प्रश्नोत्तर - मोहनमाला, भा. ३' से भाव ग्रहण, पृ. १८५
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