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* स्वाध्याय और ध्यान द्वारा कर्मों से शीघ्र मुक्ति ® ४१७ 8
से अनेक लौकिक कार्य सिद्ध होते हैं, बशर्ते कि वे सात्त्विक ध्यानतप से युक्त हों।
आगम-साहित्य के अध्ययन से ज्ञात होता है कि लौकिक कामना से तप करने वालों को भी लौकिक सिद्धियाँ प्राप्त हुई हैं। 'ज्ञाताधर्मकथा' में वर्णन है कि चेलना रानी के दोहद को पूर्ण करने हेतु अभयकुमार ने तप किया था। 'अन्तकृद्दशांग' के अनुसार-माता देवकी की पुत्र-प्राप्ति की इच्छा को पूरी करने हेतु श्रीकृष्ण वासुदेव ने हिरणगमैषी देव के ध्यानपूर्वक आह्वान करने हेतु तेले का तप किया था। इन सब उदाहरणों से स्पष्ट है कि बाह्यान्तरतप से लौकिक प्रयोजनों की सिद्धि होती है। किन्तु लौकिक कामना से किया जाने वाला बाह्याभ्यन्तरतप मोक्ष-प्राप्ति या कर्मनिर्जरा में बाधक है।
किन्तु आध्यात्मिक विकास एवं कर्ममुक्ति की दृष्टि से किया जाने वाला ही महत्त्वपूर्ण है। धर्मध्यान के अन्तर्गत जो ५ धारणाएँ बताई हैं, उनके प्रयोग का लोकोत्तर फल कर्ममुक्ति है; मगर योगवाशिष्ठ में लौकिक फल भी बताया गया हैपार्थिवी धारणा सिद्ध होने पर शरीर में किसी प्रकार का रोग नहीं होता। आग्नेयी धारणा सिद्ध हो जाने पर वह योगी अग्नि में डाल दिये जाने पर भी नहीं जलता। वायवी धारणा सिद्ध हो जाने पर योगी वायुरहित स्थान में भी जीवित रह सकता है। वारुणी धारणा सिद्ध हो जाने पर योगी अगाध जल में नहीं डूबता। तत्त्वरूपवती धारणा सिद्ध होने पर योगी आकाश में उड़ सकता है। इन पाँचों धारणाओं के सिद्ध होने पर आत्म-शक्तियाँ अत्यधिक जाग्रत हो जाती हैं।
___ध्यान-साधना में अन्य आवश्यक बातें 'पूर्वोक्त चार बातों के अतिरिक्त ध्यान-साधना में आहार (सात्त्विक परिमित), स्थान (एकान्त, शान्त), सहायक (ध्यान का अनुभवी साधक), योग (शरीर और " मन की स्वस्थ, शान्त) अवस्था, योग्यकाल तथा अप्रमाद, आसनविजय, समत्व
एवं ज्ञान-दर्शन-चारित्र-वैराग्यभावना अपेक्षित है। तभी ध्यान-साधना सफल हो सकती है।
-तत्त्वानुशासन २00
१. (क) ज्ञानार्णव, श्लो. ३८ (ख) यो यत्कर्मप्रभुर्देवस्तद्ध्यानाविष्टमानसः।
ध्याता तदात्मको भूत्वा साधयत्यात्मवांछितम्॥ २. जैन आचार : स्वरूप और सिद्धान्त' से भाव ग्रहण . ३. योगवाशिष्ठ निर्वाण प्रकरण ७१-९२ ४. 'महावीर की साधना का रहस्य' के आधार पर, पृ. १९२-१९३
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