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ॐ ४८४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ७ ®
ही पूर्वबद्ध घोर कर्मों को उदय में आने से पहले ही काटने हेतु यावज्जीवन छठ-छठ (दो-दो उपवास) के अनन्तर पारणा करने का प्रत्याख्यान (संकल्प) ग्रहण किया था। उसके पश्चात् जब वे राजगृही नगरी में पारणे के दिन भिक्षा के लिये गए तो छह महीनों में यक्षाविष्ट आतंकवादी के रूप में उन्होंने जो १,१४१ स्त्री-पुरुषों की हत्या की थी, उसके कारण जो अल्पस्थितिक घोर कर्म बँधे थे, वे उदय में आ गए और राजगृही के नागरिकों द्वारा ताड़न-तर्जन-आक्रोश आदि के रूप में दिये हुए उपसर्ग को उन्होंने समभावपूर्वक अदीन मन से सहन किया तथा सम्यग्दृष्टिपूर्वक तप-संवर की आराधना की। फलतः इस प्रकार की अविपाक निर्जरा के फलस्वरूप छह महीनों में ही सर्वकर्मक्षय करके वे सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो गए।
इसी प्रकार श्रावस्ती नगरी के राजा कनककेतु के पुत्र राजकुमार खन्धक ने विरक्तभाव से मुनि-दीक्षा अंगीकार की। संयम-पालन तथा तपश्चर्या में दक्ष एवं परिपक्व होने पर अपने गुरुदेव से स्वतंत्र विहार की आज्ञा प्राप्त करके वह विचरण करने लगे। उनके गृहस्थपक्षीय पिता ने उनकी किसी प्रकार की अपेक्षा न होते हुए भी वात्सल्यभाव से अंगरक्षक के रूप में ५00 सुभटों को उनके साथ भेजा। विचरण करते हुए वे अपनी गृहस्थपक्षीया बहन सुनन्दा रानी की राजधानी कुन्तीनगर में पधारे। मासखमण तप के पारणे के दिन वे (खन्धक मुनि) भिक्षा के लिये राजमहल के पास से होकर जा रहे थे। उन्हें देखकर रानी सुनन्दा को अपने भाई की स्मृति हो आई। राजा के साथ चौपड़ खेल रही रानी को अन्यमनस्क देखकर उसके पति राजा पुरुषसिंह को उसके चरित्र पर सन्देह हुआ। राजा ने जल्लाद को बुलाकर खन्धक मुनि के सारे शरीर की चमड़ी उतारने का आदेश दे दिया। मुनि ने पूर्व-भव में काचर का छिलका ज्यों का त्यों उतारकर प्रसन्नता प्रकट की थी। उसके कारण बँधे हुए गाढ़ कर्म अब इस भव में उदय में आ गए। मुनि को श्मशान में ले जाकर जल्लादों ने उनके सारे शरीर की चमड़ी उतार दी। घोर वेदना के समय खंधक मुनि समाधिस्थ रहे। इस अद्भुत तितिक्षा के कारण हुई अविपाक निर्जरा से सर्वकर्मक्षय करके शीघ्र ही उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
ध्यानस्थ प्रसन्नचन्द्र राजर्षि ने कुछ ही देर पहले भाव (मानसिक) हिंसा के कारण अल्प-स्थितिक घोर कर्म बाँधे थे, किन्तु उन कर्मों के उदय में आने से पहले ही उन्होंने तीव्रतर पश्चात्तापरूप प्रायश्चित्त तप के फलस्वरूप पहले चार घातिकर्मों का क्षय करके केवलज्ञान और तत्पश्चात् शीघ्र ही सर्वकर्मक्षयरूप मोक्ष प्राप्त किया।
ये हैं अविपाक निर्जरा के द्वारा शीघ्रतर मोक्ष-प्राप्ति के ज्वलन्त उदाहरण।'
१. (क) देखें-अन्तकृद्दशा में गजसुकुमाल मुनि की मोक्ष-प्राप्ति का वर्णन
(ख) देखें-अन्तकृद्दशा में अर्जुन मुनि का वर्णन
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