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* सकामनिर्जरा का एक प्रबल कारण : सम्यक्तप ॐ २७७ *
विचार-तरंगें पैदा न हों, इन्द्रियों की भी हानि न हो और न ही धार्मिक क्रियाएँ करने में बाधा पहुंचे। ___ इस प्रकार जैनधर्म ने तप का सही और संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत कर दिया
____ सम्यक्तप का उद्देश्य सिद्धियों के चक्कर में फँसना नहीं है तप से अनेक लब्धियाँ, उपलब्धियाँ और सिद्धियाँ भी प्राप्त होती हैं। तप से चक्रवर्ती पद भी प्राप्त होता है, इन्द्रपद भी प्राप्त हो जाता है, यहाँ तक कि भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों में तथा नौ ग्रैवेयक देवों तक में उत्पत्ति भी तप के प्रभाव से होती है। यह हम निर्जरा से सम्बन्धित निबन्ध में बता आए हैं। तप से वचनसिद्धि, शाप-वरदान देने की सिद्धि, अपूर्व ऋद्धि, तेजस्विता आदि प्राप्त होती है। तप से इहलौकिक-पारलौकिक लाभ, प्रसिद्धि, प्रशंसा, यशकीर्ति, अर्थलाभ आदि अनेक भौतिक लाभ भी प्राप्त होते हैं। परन्तु सम्यक्तप का उद्देश्य इन ऋद्धियों, भौतिक लब्धियों और सिद्धियों के चक्कर में फँसना नहीं है।
... इहलोक-परलोक-प्रशंसा-पूजादि के लिए तप न करो भगवान महावीर से पूछा गया-"भगवन् ! तपस्या क्यों और किस उद्देश्य से करनी चाहिए?" उन्होंने कहा-"केवल अपने कर्मों की (सकाम) निर्जरा (अर्थात् कर्मक्षय करके आत्म-शुद्धि) के लिए तपस्या करो। इहलोक के किसी लौकिक या भौतिक लाभ या स्वार्थ के लिए तप मत करो, न ही परलोक के किसी स्वार्थ या लोभ से तप करो और न कीर्ति, प्रशंसा, श्लाघा या प्रसिद्धि के लिए तप करो।" भगवान महावीर का यह संकेत लौकिक या सांसारिक किसी भी प्रयोजन के लिये सम्यक्तप का न होकर एकमात्र उत्कृष्ट अध्यात्मभाव द्वारा मोक्ष (सर्वकर्म क्षयरूप मुक्ति) प्राप्त करने की ओर है। इसके गर्भ में आत्मा की शुद्धि, कष्ट-सहिष्णुता, अनुद्विग्नता, आस्तिक्य तथा आत्म-शक्तियों का सम्यक् विकास निहित है। भगवान ने तपस्या को उत्कृष्ट मंगलमय धर्म तथा मोक्ष का मार्ग बताया है।
१. सो नाम अणसणतवो, जेण मणो अमंगलं न चिंतेइ। __जेण न इंदियहाणी, जेण य जोगा न हायंति॥ २. इन तथ्यों की विशेष जानकारी के लिये देखें-'निर्जरा : अनेक रूप और स्वरूप' शीर्षक
लेख ३. नो इहलोगट्टयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो परलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा, नो कित्ति-वण्ण-सद्दसिलोगट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा; नन्नत्थ निज्जरट्ठयाए तवमहिट्ठिज्जा।
-दशवैकालिकसूत्र, अ. ९, उ. ४
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