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ॐ प्रायश्चित्त : आत्म-शुद्धि का सर्वोत्तम उपाय ॐ ३४३ ॐ
प्रायश्चित्ततप द्वारा सर्वांगीण रूप से पापों का प्रक्षालन होकर आत्म-शुद्धि, सकामनिर्जरा तथा मोक्ष तक की उपलब्धि तभी हो सकती है, जब स्वेच्छा से साधक निन्दना-गर्हणा-प्रतिक्रमणादिपूर्वक आलोचना करे। स्वेच्छा से आलोचना न करने पर सामाजिक या राष्ट्रीय अथवा आध्यात्मिक संघीय व्यवस्था के लिए आचार्यादि उसे दण्ड देते हैं, दण्ड न लेने पर संघ से निष्कासित भी कर देते हैं।
____जाहिर सभा में आलोचना प्रायश्चित्त की प्रक्रिया कई बार किसी साधक द्वारा दोष हो जाने पर आलोचना करने की या जाहिर में दोष प्रगट करने की इच्छा होते हुए भी मनोदौर्बल्य के कारण उसका साहस नहीं होता, तब दूसरे किसी विश्वस्त व्यक्ति द्वारा उसका दोष सभा में जाहिर किया जाता है, उसे उस समय उपस्थित रहना जरूरी होता है। महात्मा गांधी जी के आश्रम में आश्रमवासी से कोई दोष या अपराध हो जाता तो या तो वह प्रार्थना के समय पश्चात्तापपूर्वक अपने दोष को विवरणपूर्वक प्रकट करता अथवा जाहिर में अपने दोष प्रकट करने की हिम्मत न होती तो उसके बदले उसका कोई विश्वस्त साथी विवरणपूर्वक जाहिर करता था और गांधी जी द्वारा निर्धारित प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध हो जाता। इस प्रकार प्रायश्चित्त जीवन की सर्वांगीण शुद्धि का सार्वभौम उपाय है।' .
१. (क) भगवतीसूत्र २५/७
(ख) स्थानांगसूत्र, स्था. १० (ग) 'आश्रमसंहिता' से भाव ग्रहण
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