________________
ॐ योग्य क्षेत्र में पुण्य का बीजारोपण ® १९५ **
आगजनी आदि की खुली छूट दे दी। निर्दोष जनता पर होने वाले इस अत्याचार और विनाशलीला को रोकने का बीड़ा उठाया-नगर सेठ खुशालचन्द्र ने। उसने हमीद खाँ को पीढ़ियों से अर्जित अधिकांश धन देकर अहमदाबाद की रक्षा की, नगर में शान्ति स्थापित करवाई, जनता के बहुमूल्य प्राण बचाये। इसी प्रकार बाबा राघवदास ने गोरखपुर आदि कई स्थानों में अग्निकाण्ड, हत्याकाण्ड आदि में स्वयं जान की बाजी लगाकर अनेक लोगों के प्राण बचाये। इस प्रकार स्वयं के प्राणों को खतरे में डालकर जनता के प्राण बचाना प्राणपुण्य का आचरण है।'
(३) लयनपुण्य का अर्थ होता है-निःस्वार्थभाव से किसी निराश्रित, अनाथ, असहाय या भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों से पीड़ित व्यक्तियों को आश्रय देना, रहने के लिए मकान देना। आज से लगभग ९00 वर्ष पहले की बात है। गुजरात की एक जैन महिला लच्छी (लक्ष्मी) बहन ने मारवाड़ में दुष्काल से पीड़ित होकर आये हुए ऊदा मेहता को बिना किसी जान-पहचान के अपने यहाँ रहने के लिए आश्रय दिया, भोजन कराया। बाद में मकान बनाने के लिए जमीन दी। यही ऊदा मेहता आगे चलकर सोलंकी राजाओं के शासनकाल में मंत्री बना। लच्छी बहन ने इस प्रकार लयनपुण्य अर्जित किया।२
इसी प्रकार भटिण्डा जैन समाज के प्रधान वयोवृद्ध लाला कुन्दनलाल जी ने सन् १९७१ के चातुर्मास में शुभ भाव से स्थानीय महिलाओं के लिए पौषधशाला, कन्याशाला तथा अतिथियों के लिए धर्मशाला बनवाने हेतु पर्याप्त धन तथा १,२00 गज जमीन एवं साधन जैन समाज को दान के रूप में देकर लयनपुण्य अर्जित किया। इसी प्रकार जो पुण्यशाली अभाव-पीड़ितों, निराश्रितों के लिए अपनी जमीन, धर्मस्थान के लिए अपना मकान तथा निर्मित विद्यालय, अनाथालय, आश्रम, रुग्णालय, धर्मशाला आदि शुभ भाव से दान के रूप देता है, वह भी • लयनपुण्य उपार्जित कर लेता है। - (४) शयनपुण्य का अर्थ है-सोने-बैठने के लिए पट्टा, खाट, शयनीय स्थान, शय्या, चादर आदि सामग्री देना। कुछ ही दिनों पहले की घटना है। ५० मनुष्यों की एक बारात बस से लखनऊ से अलीगढ़ आई हुई थी। दूसरे दिन जब बारात वापस लखनऊ जाने वाली थी कि कुछ उपद्रवियों ने बस पर पथराव किया और लड़कियों से छेड़खानी करने लगे। श्रीमती मिथिलेश यादव ने यह देखकर उपद्रवियों को १. (क) “महावीर नौ धर्म' (जयभिक्खु) से संक्षिप्त
(ख) 'युग निर्माण योजना' से संक्षिप्त । २. 'वल्लभ प्रवचन, भा. ३' (प्रवक्ता-विजयवल्लभसूरि जी म.) के पर्युषण प्रवचन से संक्षिप्त ३. 'सुधर्मा' (मासिक), दि. १५-३-७२ के अंक से संक्षिप्त
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org