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* १९८ 8 कर्मविज्ञान : भाग ७ 8
___ श्री कृष्ण वासुदेव ने तीर्थंकर अरिष्टनेमि के १८ हजार साधुओं को भक्तिभावपूर्वक वन्दन-नमस्कार किया। तदनन्तर भगवान अरिष्टनेमि के पास आकर कहा-“प्रभो ! अब जरा थकान आ गई है।" भगवान ने कहा-श्रीकृष्ण ! तुम भूलते हो ! थकान आई नहीं, थकान उतरी है। सातवीं नरक की स्थिति में से नीचे की चार नरकों की कर्मस्थिति तुमने तोड़ डाली है, क्योंकि यह वन्दन क्रिया बहुत ही उच्चभाव से अपार अहोभाग्य समझकर की गई है।"१ अगर व्यक्ति मन-वचन-काया को अशुभ से हटाकर अथवा सांसारिक-लौकिक प्रयोजनों से हटाकर श्रद्धा-भक्ति-विनयबहुमानपूर्वक निष्ठा के साथ त्रिलोकबन्ध विश्वपूज्य पंचपरमेष्ठी के नमस्कार में लगा दे, उन्हें अपना सर्वात्मना समर्पण कर दे तथा एकाग्रतापूर्वक नमस्कार महामंत्र का विधिवत् पाठ करे तो समस्त पापों (अशुभ कर्मों) का नाश होता है। जैसा कि इस महामंत्र की चूलिका में कहा है-“सव्व-पावप्पणासणो।" नमस्कार मंत्र के जप, पाठ या स्मरण के प्रभाव से पुण्य प्रबल होने से लौकिक, भौतिक, नैतिक, सामाजिक और आध्यात्मिक सभी सत्कार्य सिद्ध होते हैं; एकाग्रता और श्रद्धा-भक्तिपूर्वक नमस्कार महामंत्र के पाठ से रोग, शोक, संकट, चिन्ता, दरिद्रता आदि दुःखों से मुक्त हो जाता है। एकाग्रता, श्रद्धा-भक्ति और निष्ठा के साथ नमस्कार महामंत्र के रटन से गुलाबचन्दभाई का थर्ड स्टेज पर पहुँचा हुआ दुःसाध्य केंसर रोग मिट गया। वह सब तरह से स्वस्थ, सशक्त और आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हो गया। बेगू के गंगाराम तेली की नवकार मंत्र पर अटूट श्रद्धा है। इसके प्रभाव से उसके सभी कार्य प्रायः अचूकरूप से सिद्ध होते हैं। बिहार प्रान्त का रसूल मियाँ नमस्कार महामंत्र के श्रद्धा-भक्तिपूर्वक जाप के प्रभाव से सभी आपत्तियों के समय सुरक्षित रहा। सुना है, सन् १९४७ में हिन्दुस्तान-पाकिस्तान विभाजन के समय रावलपिंडी में हिन्दुओं पर मुस्लिम आतंकवादियों और उपद्रवियों द्वारा बार-बार आक्रमण, हत्या, लूटपाट, दंगे आदि हो रहे थे। उस समय योगिराज श्री फूलचन्द जी महाराज ने एकाग्रता एवं निष्ठापूर्वक महामंत्र नवकार का पाठ किया, जिसके प्रभाव से वहाँ के जैन मोहल्ले में दंगाई लोग कुछ भी हानि न कर सके। यह है नमस्कार से होने वाले पुण्य का प्रभाव !२ नौ प्रकार के पुण्यों के निष्कामभाव से आचरण से महान् फल
ये तो नौ प्रकार के पुण्यों के सकामभाव से आचरण करने के भौतिक फल हैं। अगर आत्मौपम्यभाव से, निःस्वार्थ, निष्काम एवं पारमार्थिकभावना एवं संवर, निर्जरा एवं धर्म-अनुप्रेक्षापूर्वक आत्मिक-भावों और आत्म-गुणों के रूप में इन नौ पुण्यों को क्रियान्वित किया जाए तो उत्कृष्ट पुण्य के साथ-साथ संवर, निर्जरा और परम्परा से मोक्ष की भी उपलब्धि हो सकती है। १. 'दिव्यदर्शन', दि. २६-१-९१ के अंक से भाव ग्रहण २. (क) देखें-णमोकार महामंत्र के चमत्कार (दिवाकर चित्रकथा) में
(ख) 'हंसा ! तू झील मैत्री सरोवर' से संक्षिप्त
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