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* १८२ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ७ *
मानवेतर प्राणी भी मानवों तथा अन्य प्राणियों को साता उपजाकर या अन्य प्रकार से उपकार करके पुण्यबन्ध करते हैं, कर सकते हैं। कई प्राणियों में दया, मानवता और कृतज्ञता कूट-कूटकर भरी होती है। एक आगमिक पुण्यकथा : मृग द्वारा मुनि को आहार दिलााने की ___ बलभद्र मुनि ने अभिग्रह कर लिया था कि वन में ही भिक्षा करूँगा। अतः वे जंगल में ही भिक्षा के लिए घूम रहे थे। एक मृग मुनि को इस प्रकार आहार के लिए. घूमते देख अपने मूक इशारे से जहाँ बढ़ई लकड़ी चीर रहे थे, उनका भोजन बना हुआ तैयार था, वहाँ ले आया। मृग ने बढ़ई को मुनिवर को आहार देने का संकेत किया। उस समय मृग की भी मुनि को आहार दिलाने की, बढ़ई की आहार देने की और मुनिवर की आहार लेने की शुभ भावना थी। उसी समय अकस्मात् तीनों पर वृक्ष के गिरने से तीनों कालधर्म प्राप्त करके उस पुण्यबन्ध के फलस्वरूप देवलोक में गये।२ नवविध पुण्य-प्राप्ति के विषय में भगवतीसूत्र के दो निर्जरापरक पाठ प्रस्तुत किये जाते हैं ___ नवविध पुण्य-प्राप्ति के विषय में आगमों तथा अन्य ग्रन्थों और आचार्यों का स्पष्ट चिन्तन एवं प्रतिपादन होने पर भी हलग्रहवश नौ प्रकार का पुण्य साधु को दान देने या साधु के प्रति शुभ योग से ही हो सकता है, ऐसी प्ररूपणा की जाती है। इस सम्बन्ध में वे 'भगवतीसूत्र' का प्रमाण प्रस्तुत करते हैं-"(प्र.) भगवन् ! तथारूप (श्रमण के वेश तथा तदनुकूल गुणों से सम्पन्न) श्रमणं या माहन को प्रासुक एवं एषणीय अशन-पान-खादिम-स्वादिम आहार द्वारा प्रतिलाभित करने वाले श्रमणोपासक को किस फल की प्राप्ति होती है ? (उ.) गौतम ! वह (ऐसा करके) एकान्तरूप से निर्जरा करता है, उसके पापकर्म का बन्ध नहीं होता।" इसके पश्चात् दूसरा पाठ भी इस प्रकार है-"(प्र.) भगवन् ! तथारूप श्रमण या माहन को (अपवादमार्ग में) अप्रासुक एवं अनेषणीय आहार द्वारा प्रतिलाभित करते हुए
१. (क) 'कल्याण' (मासिक) के जून १९६७ के अंक में प्रकाशित सत्य घटनाएँ
(ख) कादम्बिनी' (मासिक) जुलाई १९६६ के अंक में प्रकाशित सत्य घटनाएँ २. (क) यह आगमिक कथा-कृष्णचरित्र तथा त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र में है। (ख) इसके प्रमाण के लिए देखें
दुल्लहाओ मुहादाई, मुहाजीवी वि दुल्लहा। मुहादायी मुहाजीवी दोवि गच्छंति सुगइं॥
-दशवैकालिकसूत्र, अ. ५, उ. १, गा. १00
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