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ॐ ९४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ७ ॐ
कामवासना भड़क सकती है। मूल में, आन्तरिक परिस्थिति ही 'कामवृत्ति की उत्पादक है। अन्तरंग में जब कामवासना की तरंग उठती है, तब अगर बाह्य परिस्थिति अनुकूल होती है तो कामोत्तेजना बढ़ती है और व्यक्ति कामोन्मादवश कामक्रीड़ा करने में प्रवृत्त हो जाता है। कामवासना के भड़काने में कारण : अशुभ संस्कार और निमित्त
जैनागमों में बताया है कि जीव अनादिकाल से शुभाशुभ कर्मवश चतुर्गतिक संसार में परिभ्रमण करता आया है। इस जन्म-मरणादिरूप परिभ्रमण में उसने अनन्त बार कामवासनाओं का सेवन किया है, कभी मन्दरूप में, कभी तीव्ररूप में। वे कामवासना के संस्कार उसमें सुषुप्तरूप से पड़े हैं। जब भी कोई बाह्य निमित्त मिलता है, वे संस्कार जाग्रत हो जाते हैं। यद्यपि उक्त अनादिकालीन भ्रमणकाल में उस जीव ने सिर्फ वासना का सेवन नहीं किया, उपासना (आत्मिक साधनाआराधना) भी की है। इसलिए उपासना के संस्कार भी उसमें पड़े हैं। परन्तु जब मानव संवर और निर्जरा के क्षणों की उपेक्षा करके प्रमादवश बाह्य अशुभ निमित्तों के प्रवाह में बहकर उपासना के बदले कामवासना का सेवन करने लग जाता है, तब उसका बहुत शीघ्र अधःपतन हो जाता है।
कामवासना के अशुभ संस्कार बारूद की तरह हैं, निमित्त उनमें चिनगारी का काम करते हैं और कामोत्तेजना आग का विस्फोट है, वह कामवासना को एकदम भड़काती है।
अगर संस्काररूपी बारूद में निमित्तरूप चिनगारी न पड़े तो कामोत्तेजना की आग भड़क नहीं सकती अथवा यदि बारूद के समान कुसंस्कार (कर्म-संस्कार) ही खत्म कर दिये जाएँ तो उसमें निमित्तरूप चिनगारी के गिरने से भी कामोत्तेजना की आग भड़क नहीं सकती। कामोत्तेजना की आग भड़काने में उक्त दोनों का संयोग काम करता है। यदि काम-संवर-साधक व्यक्ति दोनों में से एक को भी दूर कर सके तो, शेष रहे एक की कामोत्तेजना की आग भड़काने की सामर्थ्य नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो या तो वह काम-संवर-निर्जरा-साधक आत्मा में पड़े हुए खराब संस्कारों का उन्मूलन कर दे या फिर वह अशुभ निमित्तों से बहुत दूर रहे तो वह संस्काररूपी बारूद पड़ा-पड़ा ठंडा होकर अपने आप खत्म हो जाएगा। निमित्त मिलते ही कामवासना के संस्कार भड़कते हैं
कामवासना के कुसंस्कार वेदनोकषाय मोहनीय के परमाणु रूप में अन्तर में अव्यक्त रूप से पड़े रहते हैं। कच्चा काम-संवर-साधक यों समझता है कि मेरी १. 'जो जे अमृतकुम्भ ढोलाय ना !' (मुनि श्री चन्द्रशेखरविजय जी म.) से भावांश ग्रहण
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