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* ११४ कर्मविज्ञान : भाग ७
बाह्य- आभ्यन्तर तप भी कामवृत्ति पर नियंत्रण में सहायक
जैन - शास्त्रों में बाह्य और आभ्यन्तर दोनों प्रकार के तप का अत्यन्त महत्त्व बताया है। बाह्य तप से इन्द्रिय और मन पर निग्रह करने में सरलता होती है। आध्यात्मिक क्षेत्र में कामवृत्ति पर नियंत्रण करना हो, चित्त-शुद्धि करनी हो, आध्यात्मिक विकास करना हो तो दोनों प्रकार का तप अनिवार्य है । पाँचों इन्द्रियों में सबसे अधिक खतरनाक रसनेन्द्रिय है। शेष इन्द्रियों में विकारों को प्रादुर्भूत करने में रसनेन्द्रिय प्रबल है। अतः कामवृत्ति पर नियंत्रण करने हेतु सर्वप्रथम रसना पर कन्ट्रोल करना चाहिए। तभी मोहनीय कर्म का क्षयोपशम हो सकेगा।
तप और आहार-शुद्धि से कामोत्तेजना पर नियंत्रण
'उपनिषद्' में बताया गया है - " आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः । " भावार्थ यह है कि यदि तुम अपनी प्रज्ञा या स्मृति शुद्ध करना चाहते हो, अपना सत्त्व (अन्तःकरण ) शुद्ध करो, सत्त्व-शुद्धि करनी हो तो आहार-शुद्धि करो । उचित मात्रा में सात्त्विक आहार ही सत्त्व-शुद्धि में सहायक हो सकता है । तामसिंक और राजसी आहार तो सत्त्व को अशुद्ध बनाकर कामवासना भड़कायेगा ही । और भी हिंसादि अनर्थ पैदा करेगा। तन-मन का स्वास्थ्य बिगाड़ेगा। किसी भी इहलौकिक-पारलौकिक कामना से रहित होकर तप करने से वह आत्म-शुद्धि भी करेगा, कर्मक्षय भी करने में सहायक होगा । बाह्य तप में एकाशन, आयम्बिल, निविगई, नौकारसी, पौरसी, ऊनोदरी, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, कायक्लेश, प्रतिसंलीनता आदि का समावेश है । आभ्यन्तर तप में प्रायश्चित्त, विनय, वैयावृत्त्य (सेवा), स्वाध्याय, ध्यान एवं कायोत्सर्ग ( व्युत्सर्ग), ये लगते तो बाह्य तप ही हैं, परन्तु इनका सम्बन्ध मुख्यतया आत्म-शुद्धिकारक भावों से है। इच्छा-निरोध, वासना - नियंत्रण, कामना - नियमन, संयम, व्रताचरण, त्याग, प्रत्याख्यान आदि का इनसे सीधा सम्बन्ध है | साधु-साध्वियों द्वारा विहार ( पैदल भ्रमण ) भी कायक्लेश तप है, जिससे कष्ट-सहिष्णुता, तितिक्षा आदि की शक्ति बढ़ती है।
कामवृत्ति का दमन या शमन करने में उपयोगी सूत्र
कामवृत्ति का दमन या शमन करने के लिए कुछ उपयोगी सूत्र भी ध्यान देने योग्य हैं-(१) लज्जालु बनो, (२) कुतूहलवृत्ति से दूर रहो, (३) सत्कार्य में तन-मन को ओतप्रोत कर दो, (४) निकम्मे न रहकर कुछ न कुछ सत्प्रवृत्ति करते रहो, (५) भूतकाल में कृत पापों को याद न करो, (६) पापकृत्य से तन-मन को तुरन्त रोक लो, (७) प्रतिदिन दिवस - रात्रि के आचरण का प्रतिक्रमण करो।
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