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ॐ वचन-संवर की सक्रिय साधना ® १५५ *
मेघ मुनि को संयम में स्थिर और समर्पित कर दिया इससे विलक्षण एक और उदाहरण है-श्रेणिकपुत्र मेघकुमार का। उसको भागवती दीक्षा लेने की पहली रात्रि में साधुओं के पैर की अनजाने में ठोकरें लग जाने से असह्य आर्तध्यान हो उठा और उसे साधुवेष एवं धर्मोपकरणों का त्यागकर दीक्षा छोड़ने का विचार हो गया। भगवान महावीर को उसकी भूल का पता लग गया, परन्तु उन्होंने उसे तुरन्त नहीं बताई। On the spot भूल बताने से मेघकुमार मुनि का मन भगवान के प्रति अश्रद्धान्वित हो सकता था। इसलिए जब स्वयं उसने अपने मन की बात कही, तब भगवान ने उसे अत्यन्त वात्सल्यपूर्वक उसके पूर्व-जन्म में हाथी के भव में वन में दावाग्नि लग जाने से अपने द्वारा किये गए मण्डल में हजारों पशुओं को शरण देने तथा एक खरगोश के प्रति अनुकम्पा से प्रेरित होकर बीस पहर तक अपना पैर अधर रखकर उसकी रक्षा करने से मनुष्यजन्म प्राप्त करने की झाँकी बताई। कितना कष्ट सहन किया था, उस समय और अब जरा से कष्ट से घबरा गए? मेघ ! तुम स्वयं सोचो और जरा-सी अपनी असहिष्णुता के कारण अपने महाव्रती साधु-जीवन के त्याग करने का क्या परिणाम आएगा? मैंने तुम्हें बता दिया, अब जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो !" यद्यपि भगवान महावीर ने मेघ मुनि को न तो कोई उपालम्भ दिया, न धिक्कारा और न ही कटु वचन कहे, न ही उसे अपनी भूल बताई। किन्तु इतने से इशारे से वह स्वयं अपनी भूल समझकर उसे सुधारने और सर्वस्व समर्पित करने को उद्यत हो गया।
संघ-समर्पित साधु-साध्वियों को नियाणा करने से रोका इसी प्रकार एक बार जब धर्मसंघ के प्रति समर्पित साधु-साध्वी भगवान के समवसरण में उनके दर्शनार्थ आए श्रेणिक राजा और चेलना रानी के रूप और वैभव को देखकर नियाणा करने को उद्यत हो रहे थे, तब भगवान महावीर ने उन्हें अपनी भूल के प्रति सावधान किया और वैसी भूल करके अपने संयम को खोने से रोका। साधु-साध्वियों ने भी तुरन्त अपनी भूल सुधार ली।
गोशालक को भूल बताने-कहने से भगवान क्यों विरत हो गए ? किन्तु जब गोशालक को दीक्षित अवस्था में अपने साथ रहकर बार-बार भूल करते देखा और उसकी विरोधी एवं अहंकारी मनोवृत्ति देखी तो उन्होंने उसकी भूल पर कुछ भी कहना उचित नहीं समझा, क्योंकि उन्होंने देखा उद्धत और अहंकारी साधक जब अपनी भूल को सुधारने के बदले भूल सुझाने-बताने वाले
१. देखें-ज्ञाताधर्मकथांग का प्रथम उत्क्षिप्त-ज्ञात अध्ययन
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