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संवर और निर्जरा के परिप्रेक्ष्य में
कामवृत्ति से विरति की मीमांसा
क्या कामवृत्ति मौलिक मनोवृत्ति है ?
कामशक्ति मनुष्य-जीवन को प्राप्त हुई अनेक शक्तियों में से एक है। काम एक वृत्ति है। मनोविज्ञानशास्त्री फ्रायड ने कामवृत्ति को मौलिक मनोवृत्ति माना है, किन्तु उसके पश्चाद्वर्ती मनोविज्ञानविशारद जुंग आदि ने इसे मौलिक मनोवृत्ति मानने से इन्कार किया है। जैन दृष्टि से काम के दो रूप
जैनदर्शन में 'काम' को दो अर्थों में माना है-इच्छाकाम और मदनकाम। दूसरे शब्दों में हम इन्हें कामना और वासना कह सकते हैं। ये दोनों ही काम के दो रूप हैं। कामनात्मक काम को पाँचों इन्द्रियों के विषयों के प्रति राग-द्वेषात्मक या आसक्ति-घृणात्मक या कामभोगात्मक कहा है तथा वासनात्मक काम को स्त्रीवेद, पुरुषवेद एवं नपुंसकवेद इन तीन भागों में विभक्त किया है। कामवासना से जीवन का सर्वनाश सम्भव
यद्यपि काम एक शक्ति है, परन्तु उसका उपयोग अच्छे रूप में किया जाए तो उससे लाभ है और बुरे रूप में किया जाए तो उससे हानि है। अग्नि का सदुपयोग करने से. सद्गृहस्थ लाभ उठाता है और उसी का दुरुपयोग जीवन को खतरे में डाल देता है। उसी प्रकार कामशक्ति का सदुपयोग अथवा वीर्य की सुरक्षा से मनुष्य को विविध लाभ हैं और उसी का दुरुपयोग या अत्यन्त उत्तेजित करके वीर्यनाश करने से जीवन का सर्वनाश भी सम्भव है। उच्छृखल कामभोगों पर नियंत्रण अत्यावश्यक - यह निर्विवाद सत्य है कि कामभोगों की अधिकता मनुष्य की शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी प्रकार की शक्तियों का ह्रास कर देती है। कामवासना के सेवन में कई मनुष्य भ्रमवश आनन्द और मौज की कल्पना करते हैं। परन्तु यह तो अनुभवसिद्ध बात है कि पिछले चार-पाँच दशकों में उन्मुक्त भोग,
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