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ॐ १३० * कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
'उत्तराध्ययनसत्र' में इस समिति की विधि बताते हुए कहा गया है-मनि औधिक (रजोहरणादि नित्य ग्राह्य) उपधि (उपकरण और औपग्रहिक उपधिचौकी, पट्टा, उपाश्रय आदि कारणवश ग्राह्य) उपकरणों (भाण्डकों) को लेने (उठाने) और रखने (आगे कही हुई) विधि का प्रयोग करे। उपयोगयुक्त (समितिवान्) एवं यतनापूर्वक प्रवृत्ति करने वाला मुनि पूर्वोक्त दोनों प्रकार के उपकरणों का सदा आँखों से पहले प्रतिलेखन (देखभाल) करके और प्रमार्जन करके ग्रहण करे या रखे। आशय यह है कि जिस उपकरण को उठाना या रखना हो, उसे पहले आँखों से भलीभाँति देखभाल (प्रतिलेखन) कर ले, ताकि उस.पर कोई जीव-जन्तु न हो, फिर रजोहरण आदि से प्रमार्जन कर ले, ताकि कोई जीव-जन्तु हो तो उसे धीरे से एक ओर कर दिया जाय, उसकी विराधना न हो। आदान-निक्षेप-समिति के अतिचार ।
'भगवती आराधना' में आदान-निक्षेप-समिति के अतिचार इस प्रकार बताये हैं-जो वस्तु लेनी है अथवा रखनी है, उसे लेते या रखते समय इसमें कोई जीव-जन्तु है या नहीं? इसका ध्यान न करना तथा अच्छी तरह से भूमि अथवा वस्तु का प्रमार्जन (स्वच्छ) न करना आदान-निक्षेपण-समिति के अतिचार हैं। इनसे साधक को बचना चाहिए। ___ आदान-निक्षेप-समिति द्वारा मन-वचन-काया के अशुभ योगों का निरोध होना, शुभ योग-संवर है तथा किसी वस्तु को उठाने-रखने में होने वाली हिंसा, पराई दूसरे के हक की वस्तु को चोरी से उठाने-रखने से होने वाली चोरी तथा दूसरे के अधिकार की वस्तु को उठाकर अपने कब्जे में कर लेने पर उस विषय में पूछने १. (क) वाणुवहिं संजमुवहिं सोचुवहिं अण्णमप्पमुवहिं वा।
पयदं गहण-निक्खेवो समिदी आदाण-निक्खे वा॥१४॥ आदाणे निक्खेवे पडिलेहिय चक्खुणा पमज्जेज्जो।
दव्वं च दव्वट्ठाणं संजम लद्धीए सो भिक्खू॥३१९॥ -मूलाराधना १४, ३१९ (ख) धर्माविरोधिनां परानुपरोधिनां द्रव्याणां ज्ञानादि-साधनानां ग्रहणे विसर्जने च निरीक्ष्य
प्रभृत्य प्रवर्तनमादानं-निक्षेपणासमितिः। (ग) ओहोवहोवग्गहियं भंडगं दुविहं मुणी।
गिण्हंतो निक्खिवंतो य पउंजेज्ज इमं विहिं॥१३॥ चक्खुसा पडिलेहित्ता पसज्जेज्ज जयं जई। आइए निक्खिवेज्जा वा दुहओ वि समिए सया॥१४॥
-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २४/१३-१४; विवेचन (आ. प्र. स.), पृ. ४१५ २. आदातव्यस्य स्थाप्यस्य वा अनालोचनं, किमत्र जन्तवः सन्ति, न सन्ति वेति दुष्प्रमार्जनं च आदान-निक्षेपण-समित्यतिचारः।
--भगवती आराधना (वि.) १६/६२/८