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* १९२ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
सामान्य भावना का भी जादुई असर
फिर भी सामान्य भावनाओं से भी कितना अद्भुत प्रभाव और चमत्कार घटित हो जाता है ? इसे बताना भी हम आवश्यक समझते हैं, ताकि इन आध्यात्मिक रसायनों से ओतप्रोत भावनाओं की ओर साधक शीघ्र अभिमुख हो सके। भावना के प्रभाव से विष भी अमृत हो गया
प्रसिद्ध भक्त शिरोमणि मीरां को राणा ने विष मिश्रित दूध का प्याला पीने के लिए भेजा। मीराबाई अमृतभावना से भावित होकर उसे अमृत समझकर पी गई। फलतः वह विष विष नहीं रहा, मीरां की प्रबलभावना से अमृत में परिवर्तित हो गया। . . भावना से सर्दी गर्मी में तथा गर्मी सर्दी में परिवर्तित
कोई व्यक्ति हिमालय की ठंडी बर्फ पर निर्वस्त्र होकर कितनी देर तक बैठ सकता है? परन्तु योगिक प्रक्रिया के द्वारा जब वह उष्णता (गर्मी) की भावना करता है, तो देखते ही देखते शरीर में गर्मी छा जाती है। पसीने से उसका शरीर तरबतर हो जाता है। यह प्राकृतिक परिवर्तन नहीं है, किन्तु भावनात्मक परिवर्तन है। यदि प्रकृतिजन्य परिवर्तन होता तो वहाँ बैठे हुए सभी व्यक्तियों के शरीर में गर्मी पैदा हो जाती, पसीना टपकने लगता; ऐसा तो हुआ नहीं। जिस व्यक्ति ने उष्णता की भावना की थी, उसी के शरीर में गर्मी पैदा हुई। इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में, जहाँ धरती तवे-सी तप रही हो, चारों ओर लूएँ चल रही हों, वहाँ साधक ठण्डक की भावना करता है, पूरे प्रबल मनोयोगयुक्त संकल्प के साथ। इसका भी आश्चर्यजनक परिणाम आया कि उसके शरीर में सर्दी व्याप्त हो गई। कंबल ओढ़ने पर भी उसे ठंड लगने लगी। यह भावनाजन्य परिवर्तन नहीं तो क्या है ? साधक की प्रबल भावना से आक्रामक बैल भी शान्त हो जाता है
जापान में 'झेन' नामक एक ध्यान-सम्प्रदाय है। उसके सदस्य भावना के अनेक प्रयोग करते हैं। वे एक नियत मैदान में जाते हैं और भयंकर व्रख्वार बैल के साथ निहत्थे होकर लड़ते हैं। उनके पास कोई भी लाठी, ढेला या डंडा नहीं होता। एक खूख्वार बैल को लाल कपड़ा दिखाकर भड़काया जाता है और कुश्ती के लिए ललकारा जाता है। बैल पूरे वेग से उस व्यक्ति पर टूट पड़ता है। परन्तु आश्चर्य यह है कि वह दुबला-पतला साधक प्रबलभावना और दृढ़ संकल्प के साथ वहाँ अविचलित होकर खड़ा रहता है। उसको देखते ही बैल परास्त होकर भाग जाता है अथवा उस आक्रामक बैल को बिलकुल शान्त कर देता है। वर्तमान में भी वहाँ यह प्रयोग होता है।
१. 'अमूर्त चिन्तन' से भावांश ग्रहण, पृ. ५, १३