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ॐ ३७८ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ ७
सामायिकचारित्र : लक्षण, प्रकार और परम्परागत विधि ___ सामायिकचारित्र-यह चारित्र ‘करेमि भंते ! सामाइयं" से यावज्जीवन सामायिक (समतायोग) में रहने का संकल्प किया जाता है। इसे समस्त सावद्ययोगों से निवृत्ति और निरवद्ययोगों में प्रवृत्ति की जाती है। 'राजवार्तिक' के अनुसारसर्वसावद्य-निवृत्तिलक्षण सामायिक छेदोपस्थापनीय आदि शेष चारों में होने से एक ही व्रत (चारित्र) है। किन्तु भेद की विवक्षा को लेकर छेदोपस्थापनीय आदि शेष चारों मिलाकर पाँच प्रकार का चारित्र है। श्रावकवर्ग की अपेक्षा को लेकर सामायिकचारित्र के दो भेद किये गए-इत्वरिक और यावत्कथिक। थोड़े कालं की यानी कम से कम एक मुहूर्त की श्रमणोपासकवर्ग के लिए सामायिक साधना इत्वरिक है और साधुवर्ग के लिए यावज्जीवन समताभाव (सामायिक) की साधना होने से यावत्कथिक है। 'मूलाचार' के अनुसार-प्रथम और अन्तिम तीर्थंकरों के समय इत्वरिक सामायिक नवदीक्षित शिष्य/शिष्या को प्रदान की जाती है (जिसे. आजकल छोटी दीक्षा कहते हैं। परम्परा यह है कि जघन्य ७ दिन, मध्यम ४ मास तथा उत्कृष्ट ६ मास तक सामायिकचारित्र के बाद बड़ी दीक्षा (पक्की दीक्षा) दी जाती है, जिसे छेदोपस्थापनिकचारित्र अंगीकार करना कहते हैं। इसमें षड्जीव निकाय का पाठ सुनाकर महाव्रतारोपण किया जाता है। जबकि पूर्व स्वीकृत सामायिकचारित्र तो यावज्जीवन तक रहता है) तथा बीच के २२ तीर्थंकर नवदीक्षित को सामायिकचारित्र ही देते हैं, छेदोपस्थापनीय नहीं। दिगम्बर परम्परा में भी सामायिकचारित्र में सर्वसावधनिवृत्तिरूप संकल्प की मुख्यता मानी गई है।३ छेदोपस्थापनीयचारित्र : दो अर्थ, दो प्रकार
छेदोपस्थापनीयचारित्र-छेदोपस्थापनीय के यहाँ दो अर्थ किये गए हैं(१) सर्वसावद्य त्यागरूप सामायिकचारित्र का छेदशः-विभागशः पंचमहाव्रतों के रूप में उपस्थापित (आरोपित) करना, (२) पंचमहाव्रतरूप साम्य या समताभाव में या मूल गुणों में प्रमादवश दोष सेवन करने वाले साधु (या साध्वी) के दीक्षापर्याय
१. सर्वसावध निवृत्तिलक्षण-सामायिकापेक्षया एकं व्रतं; भेदपरतंत्रच्छेदोपस्थापनापेक्षया पंचविधं व्रतम्।
-राजवार्तिक २. बावीसं तित्थयरा सामायिकं संजमं उवदिसंति। छेदोवट्ठावणियं पुण भयवं उसहो य वीरो य॥
-मूलाचार ७/३६ ३. (क) देखें-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २८, गा. ३२-३३ का विवेचन (आ. प्र. स., ब्यावर), पृ.
४८१ (ख) सर्वार्थसिद्धि में अ. ९, सू. १८ का विवेचन, पृ. ३३४ (सं. पं. फूलचन्द जी
सिद्धान्तशास्त्री)