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ॐ विरति-संवर : क्यों, क्या और कैसे ? * ४४५ *
व्रतबद्ध या प्रतिज्ञाबद्ध न होना, अनिश्चय,
अविश्वास की स्थिति में जीना है सचमुच व्रत ग्रहण करने और पालने से व्यक्ति के जीवन की सब तरह से रक्षा होती है। जिस प्रकार छत्री तान लेने से गर्मी और वर्षा से रक्षा हो जाती है, वैसे ही व्रतों की छत्री तान लेने से तन, मन और भावों के ताप-संताप से तथा मिथ्यात्व, प्रमाद, कषाय, अविरति और अशुभ योगों की वर्षा से व्यक्ति की रक्षा हो जाती है। व्रतों से स्वयं को बाँधना पापानवों के व्यापक द्वारों को रोककर शुद्धानवों (पुण्य कार्यों) अथवा शुभ योग-संवर से जुड़ना है। निर्जरा द्वारा शुद्धोपयोग में प्रवृत्त होना है। व्रतबद्धता का इतना माहात्म्य, लाभ और सुख-शान्ति अनायास हस्तगत होने पर भी वर्तमान युग के बुद्धिजीवी, व्यवसायजीवी, श्रमजीवी एवं अनेक कष्टों से पीड़ित अधिकांश लोग यह कहते सुने जाते हैं कि “हम व्रत, नियम, त्याग, प्रत्याख्यान तो ग्रहण नहीं करेंगे, ऐसे ही पालन कर लेंगे।" ऐसे लोगों के लिए महात्मा गांधी जी के अनुभवयुक्त ये वचन अतीव प्रेरणादायक हैं-"प्रतिज्ञा (व्रत) ग्रहण न करने का अर्थ है-अनिश्चित रहना। अनिश्चितता के आधार से जगत् में कोई काम नहीं हो सकता। 'हो सकेगा, तब तक चौकी करूँगा', ऐसा चाहने वाले चौकीदार के विश्वास पर कोई भी घर का स्वामी आज तक सुख से नहीं सो सका। हो सकेगा, वहाँ तक जाग्रत रहूँगा', ऐसा करने वाले सेनापति ने आज तक विजय प्राप्त नहीं की। ‘जहाँ तक बन सकेगा, सत्य का पालन करूँगा', इस वाक्य का कोई अर्थ ही नहीं है। व्यापार में, बन सकेगा, वहाँ तक अमुक तारीख को अमुक रकम दी जाएगी, इस तरह की चिट्ठी, हुंडी या चेक के रूप में स्वीकार नहीं की जाती।" बिना प्रतिज्ञा का जीवन बिना नींव का घर अथवा कागज के जहाज के समान है। प्रतिज्ञा लेने का अर्थ है-अटल निश्चय करना। जो मनुष्य निश्चल नहीं, उसका विश्वास कौन कर सकता है ? 'जहाँ तक बन सकेगा', शब्द शुभ निश्चयों में विष के समान है। जहाँ तक हो सकेगा, वहाँ तक करने का अर्थ है-पहली ही अड़चन के समय फिसल जानाः। “व्रत लेना दुर्बलतासूचक नहीं। अमुक बात करनी उचित है तो फिर करनी ही चाहिए; इसी निश्चय का नाम व्रत है, इसी में बल है।" जहाँ जीवन को (शुभ विचार-आचार से) बाँधने का प्रश्न उपस्थित हो, वहाँ व्रत के बिना कैसे चल सकता है ? अतः व्रत की आवश्यकता के विषय में मन में कभी शंका उठनी ही नहीं चाहिए।
प्रतिज्ञा जहाज के लिए (समुद्र में) प्रकाश-स्तम्भ की तरह है। इस ओर ध्यान रखने पर अनेक तूफानों में से गुजरता हुआ भी मनुष्य बच जाता है। प्रतिज्ञा हृदय-समुद्र के अंदर उछलती हुई अनेक प्रकार की (विषय) तरंगों से मनुष्य को बचाने वाली प्रचंड शक्ति है।