________________
ॐ १९० ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ *
होने को कहा। परन्तु उसके पुत्र ने कहा-“जब तक मैं इस जाप का परिणाम साक्षात् न देख लूँ, तब तक इसमें शामिल नहीं हो सकता।' पुत्र के जीवन में शुभ भावनात्मक जाप से परमात्मा के प्रति आस्था स्थापित करने को उत्सुक उसका पिता तत्काल नगर के मेयर के पास गया और उससे कहा-आप मेरे साथ जेल के सुपरिटेंडेंट के पास चलें और उनसे कहें कि “मुझे एक घण्टे के लिए ऐसे आजन्म कैदी को दें, जिसे फाँसी की सजा फरमाई गई हो। मुझे उस पर शुभ भावनात्मक प्रार्थना (जाप) की शक्ति का प्रभाव डालना है।'' मेयर गेस्टर के जीवन से वाकिफ था। फाँसी के सजायाफ्ता कैदी को अपनी जिम्मेदारी पर सुपरिटेंडेंट के पास से अपने प्रार्थना-कक्ष में ले आया। वहाँ रोजर, मेयर और सुपरिटेंडेंट तीनों ही उपस्थित रहे। जहाँ बैठकर गेस्टर रोजाना जाप करता था, वहीं उस कैदी को बिठाया और स्वयं वहीं शुभ भावनात्मक जाप करने लगा। तुरन्त ही उस कैदी के आसपास एक तेजोवलय घूमने लगा। एक झटके के साथ वह कैदी बोल उठा-"O God, save me from sins.” एक हत्यारे (कैदी) के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर रोजर, मेयर और सुपरिण्टेंडेंट तीनों आश्चर्य में पड़ गये। वह हत्यारा फफक-फफककर रोने लगा। उसके दिल में अपने कुकृत्य पर घोर पश्चात्ताप हुआ। उसका हृदय-परिवर्तन हो चुका। मेयर की सिफारिश से उस फाँसी के कैदी को सजा से मुक्ति मिल गई। प्रभु-भक्त गेस्टर का पुत्र रोजर भी. पूर्ण श्रद्धा से पिता के साथ बैठकर प्रतिदिन शुभ भावनात्मक जाप करने लगा।' यह था भावना का प्रभाव ! ।
ऐसी भावनात्मक अनुप्रेक्षा के द्वारा दुःख और संकट में पड़ा हुआ व्यक्ति सम्यग्दृष्टि-सम्पन्न यानी बोधिलाभयुक्त हो जाता है कि सुख और दुःख देने वाला स्वयं के अतिरिक्त और दूसरा कोई नहीं है। मैंने ही.पहले कोई ऐसा दुष्कृत्य या गलत आचरण किया है, जिसका परिणाम अब सामने आ रहा है। इस प्रकार भावनात्मक अनुप्रेक्षा बार-बार करने से पुराने विचार धुल जाते हैं और नये शुभ विचार = समभाव से उस दुःख को भोगने के भाव अन्तर्मन में जम जाते हैं। इस प्रकार के भावनायोग से दृष्टि सम्यक हो जाती है, व्यक्ति के विचारों में परिवर्तन हो जाता है, उसका पहले वाला कठोर और क्रर स्वभाव भी बदल जाता है। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि आत्मा संवर और निर्जरा दोनों का लाभ भावनायोग' = अनुप्रेक्षायोग से प्राप्त कर लेता है। यथार्थता की ज्योति, जो मूर्छा और मूढ़ता की राख से आच्छादित थी, वह प्रगट हो जाती है। भावनात्मक अनुप्रेक्षा का माहात्म्य ____ भावनात्मक अनुप्रेक्षा का माहात्म्य ‘बारस अणुवेक्खा' में बहुत ही सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया गया है-“जो पुरुष इन बारह भावनाओं (अनुप्रेक्षाओं) का चिन्तन १. 'सुमरो मंत्र भलो नवकार' पुस्तक से भाव ग्रहण