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संस्मरण लिखने का आद्य प्रसंग [३ का वर्णन सुनाया। डा. शुब्रींग ने मुझसे कहा कि आप अपने पूर्वजों के इन संस्मरणों को लिपिबद्ध करें और हो सके तो संक्षेप में संस्कृत में सरल पद्यात्मक प्रशस्ति के रूप में ग्रथित करदें।
डा. शुश्रींग का यह सुझाव मुझे हृदयंगम लगा और उस दिन रात को अपने कमरे में बैठ कर कुछ प्रशस्ति स्वरूप संस्कृत पद्यों का गुंफन करने लगा। प्रारम्भ में जीवन विषयक मुख्य प्रसंगों का सूचन करने वाले सूत्रात्मक श्लोक लिखने लगा। कांट छांट करते हुए उस रात में मैंने ११ अनुष्टुप श्लोक वनाये, जिनमें अपनी जन्मभूमि, अपने वंश, माता-पिता और आद्य गुरु जैन यति का नामोल्लेख सूचित किया।
दूसरे दिन जब मैं फिर युनिवर्सिटी में डा. शुबींग के पास गया तब मैंने उनको वे श्लोक दिखाये, जिन्हें पढ़कर वे बहुत प्रसन्न हुए और बोले कि आप इन श्लोकों को अपने सुवाच्य अक्षरों में अच्छे कागज पर लिख कर मुझे भी दे दें। जिससे मैं इनको काच में महाकर अपने पास रखना चाहता हूं। मैंने वैसा किया और उन्होंने काच में अच्छी तरह मढवा कर मुझे दिखाया। काच में मढवाने के पहले मेरे हस्ताक्षर भी उस पर करवाये। ___डा. शुबींग ने कहा कि हमारे जर्मनी में ऐसी एक शिष्ट प्रणाली है कि बड़े बड़े विद्वान्, कवि, लेखक वगैरह अपने जीवन विषय के विशिष्ट संस्मरणों को इस प्रकार संक्षेप में लिपिबद्ध करके अपने सहृदयी बन्धुजनों को भेंट स्वरूप देते रहते हैं। उन्होंने अपने पास रखे हुए ऐसे कई पत्रादि भी मुझे बताये।
उस प्रसंग से मुझे कुछ अपने पूर्व जीवन के संस्मरणों को लिपिबद्ध करने की कल्पना उद्भूत हुई। परन्तु जीवन के ८० वर्ष समाप्त होने तक उसने कोई मूर्त स्वरूप नहीं धारण किया।
पिछले दो वर्षों में कुछ तो सुपरिचित बन्धुजनों के सुझाव के कारण और कुछ जीवन के अतीत का सिंहावलोकन करते रहने के कारण, कभी कभी ऐसी इच्छा होती रही है कि इतने लम्बे जीवन के प्रवास में जिन
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