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जिन विजय जीवन-कथा
कर लिया और आज दोपहर के एक घन्टे के अन्दर ही शरीर पर भभूति लगाकर लंगोट पहन लिया और हाथ में चीमटा, कमंडल आदि लेकर खाखी बाबा का चेला बन गया । यदि माँ को इसकी खबर लगेगी, तो वह मन में क्या सोचेगी इसका विचार होते ही मुझे एक प्रकार का हृदय में बड़ा श्राघात् सा लगता हुआ मालूम दिया । उस समय मेरे मन में उस उद्वेग जनक रात्री का स्मरण हो आया जिसमें मां ने किस प्रकार सारी रात अपनी छाती से लगाकर मुझे अपने पास सुलाया और बारम्बार अश्रू पूर्ण गालों से मेरा मुह भिगोती रही। मैं अपनी मां को बिना ही किसी प्रकार की खबर कराये आज इस तरह एक अपरिचित खाखी बाबा का चेला बन गया । बानेण वाले धनचन्द यति भी जब यह बात सुनेगा तो उसके मन में भी क्या आयेगा और भी यति लोग जो मुझसे मिले थे और जिन्होंने मुझे अपने पास रखने आदि की बातें कहीं थीं वे भी यह घटना सुनेंगे तो क्या सोचेंगे। इस प्रकार के अनेक उलट-सुलट विचार मेरे मन में उत्पन्न हो रहे थे और उनके कारण निद्रा भी मेरे पास न आ सकी ।
इतने में सवेरा हो गया सूर्योदय होने के पहले ही सवेरे पांच बजे खाखी महाराज उठ खड़े हुए। एक शिष्य ने पानी का भरा हुआ घड़ा उनके पास लाकर रख दिया जिससे उन्होंने स्नान कर अपना शरीर साफ किया और फिर तुरन्त उनके डेरे में जो धूनी लगी हुई थी उसमें से कुछ रक्षा लेकर छोटे से कमंडल में उसे घोलकर अपने शरीर पर लगा ली। फिर उच्च स्वर से ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए अपने इष्ट देव की संक्षिप्त पूजा विधि करते हुए आरती करने का कार्य पूर्ण किया । अन्य शिष्यों मादि ने उपस्थित होकर शंख ध्वनि के साथ झालर आदि बजाये । फिर सबने खाखी महाराज को साष्टांग नमस्कार किये मुझे भी मुख्य चेलाजी ने श्राकर कहा कि चलो गुरू महाराज आरती कर रहे हैं, सुनकर मैं भी उनके साथ आरती में शामिल होने चल पड़ा तब चेलाजी ने कहा कि इस कफनी को उतार दो सो वैसा करके मैं उनके साथ हो लिया, फिर सबके साथ खाखी महाराज को
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