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जिनविजय जीवन-कथा
पाठ छपे हुए थे । एक तीसरी छोटी सी पुस्तिका थी। जिसमें आरती आदि के समय में गाये जाने वाले दस बीस भजन छपे हुए थे । पंडितजी ने पास में बैठकर मेरी परीक्षा की दृष्टि से क्रमशः वे पुस्तकें मेरे सामने रखीं और उनको पढ़ने के लिए कहा । मैं मन में कुछ मुस्कराता हुआ परन्तु संकोच के साथ उस वर्णमाला तथा पाठवाली पुस्तिका को धीरे से स्पष्टता के साथ पढ़ गया। तब वे पंडित जी बोले कि आप तो अच्छी तरह पढ़ना जानते हैं, फिर ऐसा कैसे कहा कि मैं किसी पाठशाला आदि में नहीं पढ़ा। जवाब में मैंने उनसे कहा कि मैं किसी पाठशाला आदि में तो नहीं पढ़ा हूँ किन्तु एक दो वर्ष पहले एक यति जी महाराज के पास कुछ समय रहने का मौका पड़ा था तब उन्होंने मुझे यह वर्णमाला आदि की पढ़ाई पढ़ा दी थी इसलिए मैं कुछ २ पढ़ लेता हूँ। यह सुनकर उन पंडित जी को मेरे विषय में कुछ जिज्ञासा हुई मालूम दी । परन्तु उसी समय रूद्र भैरव जी यह देखने आ गये कि पंडित जी ने पढ़ाने का काम शुरू किया या नहीं। पंडित जी ने उनसे कहा कि नये चेलाजी बांचना पढ़ना तो ठीक जानते हैं मैं तो इनको सारस्वत व्याकरण पढ़ाना शुरू कर देना चाहता हूँ। ऐसा कहकर पंडित जी अपने डेरे पर पुस्तक लेने चले गये तब रूद्र भैरव जी ने मुझसे कहा कि देखो भैया पंडित या और कोई साधु-संत तुमसे तुम्हारे विषय में कोई बात पूछ-ताछे तो किसी को कोई बात मत कहना गुरू महाराज ने यह बात तुमसे खास तौर पर कहने के लिए मुझे भेजा है। मैंने कहा बहुत ठीक यूं मैं भी किसी से ज्यादह बात-चीत करना पसंद नहीं करता । फिर रूद्र भैरव जी ने कहा कि हमारी इस जमात में जगह २ तरह २ के बाबा, जोगी, साधु, संत आते रहते हैं । गुरू महाराज का बड़ा ठाठ और बड़ा नाम है इससे अनेक तरह के लोग आते जाते रहते हैं। इनमें कई अच्छे और कई बुरे भी होते हैं इसलिए हमको बहुत सावधान रहना पड़ता है । तुम इन बातों से अनजान हो परन्तु गुरु महाराज का ख्याल तुम्हारे बारे में बहुत अच्छा है इसलिए तुम इन आने जाने वाले लोगों से किसी प्रकार की कोई ज्यादह बातें मत करना और अपने पढ़ने में
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