Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 205
________________ १८२] जिनविजय जीवन-कथा रुढ़ प्रतिमायें राज द्वार पर लगवायी जो आज भी दृष्टि गोचर होती है । परन्तु देहली की मूर्तियाँ धर्म द्वशी आलमगीर ने 102 वर्ष पश्चात् तुड़वा दी। . राव जयमल राठौड़ के वंशज सैकड़ों सामान्त ठिकाने मारवाड़, मेवाड़ आदि देशों में फैले हुये हैं। उनमें से एक रूपाहेली भी 50 सहस्त्र आय का है । भगवती मीरा बाई के कनीष्ठ भ्राता राव जयमल्ल का 11 वां वंशज स्वयं मैं हूँ । अनेक सामन्त ठीकानों में 16.18 20 तक जयमल से पीढ़ीयां हो चुकी है परन्तु हमारे ठीकाने में अधिक जीवनी शक्ति के कारण 11 पुस्त ही हुये हैं । क्योंकि हमारे पूर्वजों की औसत 34-35 वर्षों की आती है । जो ऐतिहासिक नियमों से भी बहुत अधिक है। श्रीमती मीराँ बाई जैसी सुप्रसिद्ध ईश्वर भक्त महिला और वीर शिरोमणी इतिहास प्रसिद्ध राव जयमल्ल के समान पुरुष से उनके वंशज सहस्त्रों मेड़ता राठौड़ों को महान गौरव प्राप्त है। आज भी मेरतिया राठौड़ों के अधिकार में अनुमान 30 लाख वार्षिक आय की भूमि है । परन्तु स्वतन्त्र राजधानी मेड़ता राव जयमल्ल के काम पाते ही विनिष्ट हो गई और मुगल साम्राज्य में मिला ली गई । मेड़ता राज्य अजमेर के निकट होने से विनिष्ट हो गया । परन्तु बीकानेर दूर मरुस्थल में होने से आज भी वर्तमान है । . यही संक्षिप्त हमारा वंश परिचय है । पत्र और यह परिचय लिखने में 3 दिन लगे हैं । विनित निवेदक ठा: चतुर सिंह ता: 5 जनवरी 1940 ई० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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